Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 18] [प्रज्ञापनासूत्रः 8. कथंचित् एक चरम और अनेक अचरमरूप .है, 9. कथंचित् अनेक चरम और एक अचरम :: : है, 10. कथंचित् अनेक चरमरूप और अनेक अचरमरूप :: 0 0. है, 11. कञ्चित् एक चरम और प्रवक्तव्य का है, 12. कथंचित् एक चरम और अनेक प्रवक्तव्यरूप - है, 13. कथंचित् अनेक चरमरूप और एक प्रवक्तव्य 0 0 | है, 14. कथंचित् अनेक चरमरूप और अनेक प्रवक्तव्यरूप --- है, (किन्तु) 15. न तो एक अचरम और एक प्रवक्तव्य है, 16. न एक अचरम और अनेक प्रवक्तव्यरूप है, 17. न अनेक अचरमरूप और एक अवक्तव्य है, (और) 18. न ही अनेक अचरमरूप और अनेक प्रवक्तव्यरूप है, ( किन्तु ) 16. कथंचित् एक चरम, एक अचरम और एक अवक्तव्य 0 0 0 है, 20. न एक चरम, एक अचरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, 21. न एक चरम, अनेक अचरमरूप और एक प्रवक्तव्य है, 22. न ही एक चरम, अनेक अचरमरूप और अनेक प्रवक्तव्यरूप है, (किन्तु) 23. कथंचित् अनेक चरमरूप, एक अचरम और एक प्रवक्तव्य - है, 24. कथंचित् अनेक चरमरूप, एक अचरम और अनेक अवक्तव्यरूप 00 / / है. 25. कथंचित् अनेक चरमरूप, अनेक अचरमरूप और एक प्रवक्तव्य है, और 26. कथंचित् अनेक चरमरूप, अनेक अचरमरूप और अनेक प्रवक्तव्यरूप 0000' है। 787. सत्तपएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा। गोयमा ! सत्तपदेसिए णं खधे सिय चरिमे 9 :०१नो प्रचरिमे 2 सिय अवत्तवए 18 0 : 1 / 3 नो चरिमाइं 4 नो प्रचारमाई 5 नो प्रवत्तव्बयाई 6, सिय चरिमे य अचरिमे य 101 06/7 सिय चरिमे य अचरिमाइं च | 0 0 01010[8 सिय चरिमाइं च अचरिमे य81818. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org