________________ 16] [ प्रज्ञापनासूत्र प्रचरिमे य अवतव्वयाइं च 24 सिय चरिमाइं च अचरिमाइं च प्रवत्तव्वए यार 25 नो चरिमाइं च अचरिमाइं च प्रवत्तव्बयाई च 26 / [785 प्र.] भगवन् ! पञ्चप्रदेशिक स्कन्ध के विषय में (मेरी पूर्ववत्) पृच्छा है; (उसका क्या समाधान है ?) [785 उ.] गौतम ! पंचप्रदेशिक स्कन्ध 1. कथंचित् चरम है, 2. अचरम नहीं है, 3. कथंचित् प्रवक्तव्य | 8 | है, (किन्तु वह) 4 न तो अनेक चरमरूप है, 5. न अनेक अचरमरूप है, 6. न ही अनेक अवक्तव्यरूप है, (किन्तु) 7. कथञ्चित् चरम और अचरम ! 0 0 0 है, (वह)८. एक चरम और अनेक चरमरूप नहीं है, (किन्तु) 9. कथंचित् अनेक चरमरूप और एक अचरम 00 000 है, 10. कथंचित् अनेक चरमरूप और अनेक अचरमरूप 00 00 0 है, 11. कथंचित् एक चरम और एक अवक्तव्य - है, 12. कथंचित् एक चरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, (तथा) ܘܘܐ 13. कथंचित् अनेक चरमरूप और एक प्रवक्तव्य है, (किन्तु वह) 14. न तो अनेक चरमरूप और न अनेक प्रवक्तव्यरूप है, 15. न एक अचरम और एक प्रवक्तव्य है, 16. न एक अचरम और अनेक अवक्तव्यरूप है, 17. न अनेक अचरमरूप और एक अवक्तव्य है, 18. न अनेक अचरमरूप और अनेक अवक्तव्यरूप है, 16. (तथा) न एक चरम, एक अचरम और एक अवक्तव्यरूप है, 20. न एक चरम, एक अचरम और अवक्तव्यरूप है, 21. न एक चरम अनेक अचरमरूप और एक प्रवक्तव्य रूप है 22. (और) न एक चरम, अनेक अचरमरूप और अनेक प्रवक्तव्यरूप है, (किन्तु) 23. कथंचित् अनेक चरमरूप, एक अचरम और एक अवक्तव्य ' है, 24. कथंचित् अनेक चरमरूप, एक अचरम और अनेक अवक्तव्यरूप 25. क क चरमरूप, अनेक प्रचरमरूप और एक अवक्तव्य है; (किन्तु) 26. अनेक चरमरूप, अनेक अचरमरूप और अनेक प्रवक्तव्यरूप नहीं है। 786. छप्पएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा। गोयमा ! छप्पए सिए णं खंधे सिय चरिमे | |१नो प्रचरिमे 2 सिय प्रवत्तवए।:। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org