________________ छठा व्युत्क्रान्तिपद ] गोयमा! एगिदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति, नो बेइंदिएसु' जाव नो चरिदिएसु उववज्जति, पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति / [668-2 प्र.] (भगवन् ! ) यदि (वे) तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं तो क्या वे एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं, यावत् पंचेन्द्रियों तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं ? [668-2 उ.] गौतम ! (वे) एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं, किन्तु द्वीन्द्रियों में, श्रीन्द्रियों में और चतुरिन्द्रियों में उत्पन्न नहीं होते, (वे) पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं। [3] जति एगिदिएसु उववजंति कि पुढविकाइयएगिदिएसु जाव वणस्सइकाइयएगिदिएसु उववज्जति? गोयमा ! पुढविकाइयएगिदिएसु वि पाउकाइयएगिदिएसु वि उववज्जंति, नो सेउकाइएसु नो बाउकाइएसु उववज्जति, वणस्सइकाइएसु उववज्जति / [668-3 प्र.] (भगवन् ! ) यदि (वे) एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं तो क्या पृथ्वीकायिक एकेन्द्रियों में यावत् वनस्पतिकायिक एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं ? [668-3 उ.] गौतम ! (वे) पृथ्वीकायिक एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं, अप्कायिक एकेन्द्रियों में भी उत्पन्न होते हैं. किन्तु न तो तेजस्कायिक एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं और न वायुकायिक एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं, परन्तु वनस्पतिकायिक एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं। [4] जति पुढविकाइएसु उववज्जति कि सुहुमधुढविकाइएसु उववज्जति ? बादरपुढविकाइएसु उववज्जति ? गोयमा ! बादरपुढविकाइएसु उववज्जति, नो सुहमपुढविकाइएसु / [668-4 प्र.] (भगवन् ! ) यदि (वे) पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं तो क्या सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं या बादर पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं ? [668-4 उ.] गौतम ! (वे) बादर पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं, (किन्तु) सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न नहीं होते / [5] जइ बादरपुढविकाइएसु उववज्जंति किं पज्जत्तगबादरपुढविकाइएसु उववज्जति ? अपज्जत्तयबायरपुढविकाइएसु उववज्जंति ? गोयमा ! पज्जत्तएसु उववज्जति, नो अपज्जत्तएसु / [668-5 प्र.] भगवन् ! यदि बादर पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं तो क्या (वे) पर्याप्तक बादर पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्तक वादर पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं ? [668-5 उ.] गौतम ! (वे) पर्याप्तकों में उत्पन्न होते हैं किन्तु अपर्याप्तकों में उत्पन्न नहीं होते। 1. ग्रन्थानम् 3500 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org