________________ 492 1 [प्रज्ञापनासूत्र [688 उ.] गौतम ! (नारक जातिनामनिधत्तायु को) जघन्य एक, दो या तीन, अथवा उत्कृष्ट आठ आकर्षों से बांधते हैं / 686. एवं जाव वेमाणिया / [686] इसी प्रकार (आगे असुरकुमारों से लेकर) यावत् वैमानिक तक (के जातिनामनिधत्तायु की आकर्ष-संख्या का कथन करना चाहिए / ) 660. एवं गतिणामणिहत्ताउए वि ठितीणामनिहत्ताउए वि ओगाहणाणामनिहत्ताउए वि पदेसणामनिहत्ताउए वि अणुभावणामनिहत्ताउए वि। [690] इसी प्रकार (समस्त जीव) गतिनामनिधत्तायु, स्थितिनामनिधत्तायु, अवगाहनानामनिधत्तायु, प्रदेशनामनिधत्तायु और अनुभावनामनिधत्तायु का (बन्ध) भी जघन्य एक, दो या तीन अथवा उत्कृष्ट आठ अाकर्षों से करते हैं। 661. एतेसि णं भंते ! जीवाणं जातिनामनिहत्ताउयं जहणेणं एक्केण वा दोहिं वा तोहि वा उक्कोसेणं अहिं प्रागरिसेहिं पकरेमाणाणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा ! सम्वत्थोवा जीवा जातिणामणिहत्ताउयं अहिं प्रागरिसेहिं पकरेमाणा, सत्तहिं प्रागरिसेहि पकरेमाणा संखेज्जगुणा, छहि प्रागरिसेहिं पकरेमाणा संखेज्जगुणा, एवं पंचर्चाह संखेज्जगुणा, चउहिं संखेज्जगुणा, तिहि संखेज्जगुणा, दोहिं संखेज्जगुणा, एगेणं आगरिसेणं पगरेमाणा संखेज्जगुणा / [691 प्र.] भगवन् ! इन जीवों में जघन्य एक, दो और तीन, अथवा उत्कृष्ट आठ आकर्षों से बन्ध करने वालों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [661 उ.] गौतम ! सबसे कम जीव जातिनामनिधत्तायु को आठ आकर्षों से बांधने वाले हैं, सात आकर्षों से बांधने वाले (इनसे) संख्यातगुणे हैं, छह आकर्षों से बांधने वाले (इनसे) संख्यातगुणे हैं, इसी प्रकार पांच (आकर्षों से बांधने वाले इनसे) संख्यातगुणे हैं, चार (आकर्षों से बांधने वाले इनसे) संख्यातगुणे हैं, तीन (आकर्षों से बांधने वाले, इनसे) संख्यातगुणे हैं, दो (आकर्षों से बांधने वाले, इनसे) संख्यातगुणे हैं और एक आकर्ष से बांधने वाले, (इनसे भी) संख्यातगुणे हैं / 662. एवं एतेणं अभिलावेणं जाव अणुभावनिहत्ताउयं / एवं एते छ प्पि य अप्पाबहुदंडगा जीवादीया माणियन्या / दारं८॥ ॥पण्णवणाए भगवईए छठें वक्कंतिपयं समत्तं / [692] इसी प्रकार इस अभिलाप से (ऐसा ही अल्पबहुत्व का कथन) गतिनामनिधत्तायु, स्थितिनामनिधत्तायु, अवगाहनानामनिधत्तायु, प्रदेशनामनिधत्तायु और यावत् अनुभावनामनिधत्तायु को बांधने वालों का (जान लेना चाहिए / ) इस प्रकार ये छहों ही अल्पबहुत्वसम्बन्धी दण्डक जीव से प्रारम्भ करके कहने चाहिए / -आठवां आकर्षद्वार // 8 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org