________________ 10] [प्रज्ञापनासूत्र हैं, (उनसे) लोक के अचरमान्तप्रदेश असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) अलोक के अचरमान्तप्रदेश अनन्तगुणे हैं। लोक और अलोक के चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक और प्रदेशों की अपेक्षा से-सबसे कम लोक-अलोक का एक-एक अचरम है, (उसकी अपेक्षा) लोक के (बहुवचनान्त) चरम असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) अलोक के (बहुवचनान्त) चरम विशेषाधिक हैं। लोक और अलोक का अचरम और (बहुवचनान्त) चरम, ये दोनों विशेषाधिक हैं। लोक के चरमान्तप्रदेश (उनसे) असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) अलोक के चरमान्तप्रदेश विशेषाधिक हैं, (उनसे) लोक के अचरमान्तप्रदेश असंख्यातगुणे हैं, उनसे अलोक के अचरमान्तप्रदेश अनन्तगुणे हैं, लोक और अलोक के चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश, ये दोनों विशेषाधिक हैं। (उनकी-लोक और अलोक के चरम और अचरम प्रदेशों को-अपेक्षा) सब द्रव्य (मिलकर) विशेषाधिक हैं। (उनकी अपेक्षा) सर्व प्रदेश अनन्तगुणे हैं (और उनकी अपेक्षा भी) सर्व पर्याय अनन्तगुणे हैं। विवेचन-चरमाचरमादि पदों का अल्पबहुत्व-प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. 777 से 780 तक) में रत्नप्रभादि पाठ पृथ्वियों के सौधर्म से अनुत्तर विमान तक के देवलोकों के, लोक, अलोक एवं लोकालोक के चरम, अचरम आदि चार भेदों के अल्पबहुत्व का द्रव्य, प्रदेशों तथा द्रव्यप्रदेश की अपेक्षा से अल्पबहुत्व का विचार किया गया है। रत्नप्रभा से लोक तक के अल्पबहुत्व को मीमांसा द्रव्य की अपेक्षा से रत्नप्रभापृथ्वी का एक अचरम सबसे कम है, क्योंकि तथाविध एकस्कन्धरूप (एकत्व) परिणाम-परिणत होने के कारण अचरमखण्ड एक है, अतएव वह सबसे अल्प है। उसकी अपेक्षा (अनेक) चरमखण्ड (चरमाणि) असंख्यातगुणे अधिक हैं, क्योंकि वे असंख्यात हैं। अब यह प्रश्न उठा कि अचरम और अनेक चरम, ये दोनों मिलकर क्या चरमों के बराबर हैं या विशेषाधिक ? शास्त्रकार इसका समाधान देते हैं कि अचरम और अनेक चरम ये दोनों विशेषाधिक हैं। इसका तात्पर्य यह है कि एक अचरम द्रव्य को चरम द्रव्यों में सम्मिलित कर दिया जाए तो चरमों की संख्या एक अधिक हो जाती है, इस कारण इनका समुदाय विशेषाधिक होता है / प्रदेशों की दृष्टि से चिन्तन किया जाए तो चरमान्तप्रदेश सबसे कम हैं, क्योंकि चरमखण्ड मध्यम (अचरम) खण्डों की अपेक्षा अतिसूक्ष्म होते हैं। यद्यपि चरमखण्ड असंख्यातगुणे हैं, तथापि उनके प्रदेश मध्य (अचरम) खण्ड के प्रदेशों की अपेक्षा सबसे थोड़े हैं। उनकी अपेक्षा अचरमान्तप्रदेश असंख्यातगुणे होते हैं / एक अचरमखण्ड चरमखण्डों के समुदाय की अपेक्षा क्षेत्र से असंख्यातगुणा होता है। चरमान्तप्रदेश और अचरमान्त प्रदेश दोनों मिलकर अचरमान्तप्रदेशों से विशेषाधिक होते हैं। इसका कारण यह कि चरमान्तप्रदेश अचरमान्तप्रदेशों की अपेक्षा असंख्यातवें भागप्रमाण होते हैं / ऐसी स्थिति में अचरमान्तप्रदेशों में चरमान्तप्रदेश सम्मिलित कर देने पर भी वे अचरमान्त प्रदेशों से विशेषाधिक ही होते हैं। ___ द्रव्य और प्रदेश दोनों की दृष्टि से विचार किया जाए तो पूर्वोक्त युक्ति के अनुसार रत्नप्रभापृथ्वी का अचरम एक होने से बह सबसे थोड़ा है। उसकी अपेक्षा बहुवचनान्त चरम (अनेक चरम) असंख्यातगुणे अधिक हैं। उनकी अपेक्षा अचरम और अनेक चरम दोनों विशेषाधिक हैं और उनकी अपेक्षा भी चरमान्तप्रदेश असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि यद्यपि अचरमखण्ड असंख्यातप्रदेशों से अवगाढ़ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org