Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 121 123 132 Imm तेरहवाँ परिणामपद प्राथमिक परिणाम और उसके दो प्रकार दणविध जीवपरिणाम और उसके भेद-प्रभेद नैरयिकों में दविध परिणामों की प्ररूपणा असुरकूमागदि भवनवामियों की परणाममबधी प्ररूपणा एकेन्द्रिय से तिर्यचपंचेन्द्रिय जीवों तक के परिणाम की प्ररूपणा मनुष्यों की परिणाम मम्बन्धी प्ररूपणा बाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों को परिणामसम्बन्धी प्ररूपणा अजीवपरिणाम और उसके भेद-प्रभेदों की प्ररूपणा चौदहवाँ कषायपद प्राथमिक कषाय और उसके चार प्रकार चौबीम दण्डकों में कपाय की प्ररूपणा कपायों की उत्पत्ति के चार-चार कारण कपायों के भेद-प्रभेद कपायों मे अप्ट कर्मप्रकृतियों के चयादि की प्ररूपणा पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद प्रथम उद्देशक प्राथमिक प्रथम उद्देशक के चौवीस द्वार इन्द्रियों की संख्या प्रथम संस्थानद्वार द्वितीय-तृतीय वाहल्य-पृथत्वद्वार चतुर्थ-पंचम कतिप्रदेशद्वार एवं अवगाहार अवगाहनादि की दृष्टि से अल्पवहत्वद्वार चौवीस दंडकों में संस्थानादि छह द्वारों की प्ररूपणा सप्नम-ग्रष्टम स्पष्ट एवं प्रविष्ट द्वार नौवां विषय (--परिमाण) द्वार दसवाँ अनगारद्वार ग्यारहवाँ याहारद्वार बारहवें यादर्श द्वार मे अठारहवे धमादार तक की प्ररूपणा उन्नीसवाँ-बीसवाँ कम्बलद्वार-स्थणादार इबक्रीम-बाईस-तईम-चौवीसवाँ थिग्गल-द्वीपोदधि-लोक-ग्रलोकद्वार 145 Go .ता . 159 161 .00 . 162 164 567 0ii 6 169 [10] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org