________________ अष्टम संज्ञापन ] | 509 726. एवं पुढविकाइयाणं वेमाणियावसाणाणं णेयध्वं / [729] इसी प्रकार पृथ्वीकायिकों से लेकर वैमानिक-पर्यन्त (में पाई जाने वाली संज्ञाओं के विषय में) समझ लेना चाहिए / विवेचन-नरयिकों से वैमानिकों तक में संज्ञानों की प्ररूपणा-प्रस्तुत चार सूत्रों में नैरयिकों से लेकर वैमानिक देवों तक में दसों संज्ञाओं में से पाई जाने वाली संज्ञाओं की प्ररूपणा की गई है। सामान्यरूप से चौबीस दण्डकवर्ती समस्त सांसारिक जीवों में प्रत्येक में दसों ही संज्ञाएँ पाई जाती हैं / एकेन्द्रिय जीवों में ये संज्ञाएँ अव्यक्तरूप से रहती हैं, जबकि पंचेन्द्रियों में ये स्पष्टतः जानी जाती हैं। यहाँ ये संज्ञाएं प्रायः पंचेन्द्रियों को लेकर बताई गई हैं।' नारकों में संज्ञाओं का विचार 730. नेरइया णं भंते ! कि आहारसण्णोवउत्ता भयसण्णोवउत्ता मेहुणसण्णोवउत्ता परिग्गहसण्णोक्उत्ता? गोयमा ! प्रोसणं कारणं पडुच्च भयसण्णोवउत्ता, संतइभावं पडुच्च प्राहारसण्णोवउत्ता वि जाव परिग्गहसण्णोवउत्ता वि / [730 प्र.] भगवन् ! नैरयिक क्या आहारसंज्ञोपयुक्त (आहारसंज्ञा से युक्तसम्पन्न) हैं, भयसंज्ञा से उपयुक्त हैं, मैथुनसंज्ञोपयुक्त हैं अथवा परिग्रहसंज्ञोपयुक्त हैं ? [730 उ.] गौतम ! उत्सन्नकारण (बहुलता से बाह्य कारण की अपेक्षा से वे भयसंज्ञा से उपयुक्त हैं, (किन्तु) संततिभाव (आन्तरिक सातत्य अनुभवरूप भाव) की अपेक्षा से (वे) आहारसंज्ञोपयुक्त भी हैं यावत् परिग्रहसंज्ञोपयुक्त भी हैं। 731. एतेसि णं भंते ! नेरइयाणं प्राहारसण्णोवउत्ताणं भयसण्णोवउत्ताणं मेहुणसण्णोवउत्ताणं परिग्गहसण्णोवउत्ताण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? ___ गोयमा ! सव्वत्थोवा नेरइया मेहुणसण्णोवउत्ता, प्राहारसण्णोवउत्ता संखेज्जगुणा, परिग्गहसण्णोवउत्ता संखेज्जगुणा, भयसण्णोधउत्ता संखेज्जगुणा / [731 प्र.] भगवन् ! इन आहारसंज्ञोपयुक्त, भयसंज्ञोपयुक्त, मैथुनसंज्ञोपयुक्त एवं परिग्रहसंज्ञोपयुक्त नारकों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [731 उ.] गौतम ! सबसे थोड़े मैथुनसंज्ञोपयुक्त नैरयिक हैं, उनसे संख्यातगुणे पाहारसंज्ञोपयुक्त हैं, उनसे परिग्रहसंज्ञोपयुक्त नैरयिक संख्यातगुणे हैं और उनसे भी संख्यातगुणे अधिक भयसंज्ञोपयुक्त नैरयिक हैं। विवेचन-नारकों में पाई जाने वाली संज्ञानों के अल्पबहुत्व का विचार–प्रस्तुत दो सूत्रों (सू. 730-731) में दो दृष्टियों से आहारादि चार संज्ञाओं में से नारकों में पाई जाने वाली संज्ञाओं तथा उनके अल्पबहुत्व का विचार किया गया है। 1. प्रज्ञापना सूत्र मलयवृत्ति, पत्रांक 223 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org