Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 518] [प्रज्ञापनासूत्र 746. सम्मुच्छिममणुस्साणं भंते ! कि सीता जोणी उसिणा जोणी सीतोसिणा जोणी ? गोयमा ! तिविहा वि जोणी। [749 प्र.] भगवन् ! सम्मूच्छिम मनुष्यों की क्या शीत योनि होती है, उष्ण योनि होती है अथवा शीतोष्ण योनि होती है ? [746 उ.] गौतम ! उनको तीनों प्रकार की योनि होती है। 750. गम्भवक्कंतियमणुस्साणं भंते ! कि सीता जोणी उसिणा जोणी सीतोसिणा जोणी? गोयमा ! नो सीता जोणी, नो उसिणा जोणी, सीतोसिणा जोणो। [750 प्र.] भगवन् ! गर्भज मनुष्यों की क्या शीत योनि होती है, उष्ण योनि होती है अथवा शीतोष्ण योनि होती है ? [750 उ.] गौतम ! उनकी न तो शीत योनि होती, न उष्ण योनि होती है, किन्तु शीतोष्ण योनि होती है। 751. वाणमंतरदेवाणं भंते ! कि सीता जोणी उसिणा जोणी सीतोसिणा जोणी ? गोयमा ! नो सीता, नो उसिणा जोणी, सीतोंसिणा जोणी / [751 प्र.] भगवन् ! वाणव्यन्तर देवों की क्या शीत योनि होती है, उष्ण योनि होती है, अथवा शीतोष्ण योनि होती है ? [751 उ.] गौतम ! उनकी न तो शीत योनि होती है और न ही उष्ण योनि होती है, किन्तु शीतोष्ण योनि होती है। 752. जोइसिय-वेमाणियाण वि एवं चेव / [752] इसी प्रकार ज्योतिष्कों और वैमानिक देवों की (योनि के विषय में समझना चाहिए)। 753. एतेसि णं भंते ! जीवाणं सीतजोणियाणं उसिणजोणियाणं सीतोसिणजोणियाणं अजोणियाण य कतरे कतरेहितो प्रध्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? ___ गोयमा ! सम्वत्थोवा जीवा सीतोसिणजोणिया, उसिणजोणिया असंखेज्जगुणा, प्रजोणिया अणंतगुणा, सीतजोणिया अणंतगुणा / 1 // [753 प्र.] भगवन् ! इन शीतयोनिक जीवों, उष्णयोनिक जीवों, शीतोष्णयोनिक जीवों तथा अयोनिक जीवों में से कौन किनसे अल्प हैं, बहुत हैं, तुल्य हैं, अथवा विशेषाधिक हैं ? [753 उ.] गौतम ! सबसे थोड़े जीव शीतोष्णयोनिक हैं, उष्णयोनिक जीव उनसे असंख्यातगुणे अधिक हैं, उनसे अयोनिक जीव अनन्तगुणे अधिक हैं और उनसे भो शोतयोनिक जीव अनन्तगुणे हैं // 1 // विवचन-नरयिकादि जीवों का शोतादि त्रिविध योनियों की दृष्टि से विचार–प्रस्तुत सोलह सूत्रों (सू. 738 से 753 तक) में नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक चौबीस दण्डकवर्ती जीवों का शीत, उष्ण एवं शीतोष्ण, इन त्रिविध योनियों की दृष्टि से विचार किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org