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Translation preserving Jain terms:
[746] Bhante! What is the nature of the birth (jōṇī) of the sammuchchhima (spontaneously born) human beings - is it śīta jōṇī (cold birth), uṣṇa jōṇī (hot birth), or śītōṣṇa jōṇī (cold-hot birth)? [746 A.] Gautama! They have all three types of birth.
[750] Bhante! What is the nature of the birth (jōṇī) of the garbhaja (embryonically born) human beings - is it śīta jōṇī, uṣṇa jōṇī, or śītōṣṇa jōṇī? [750 A.] Gautama! They have neither śīta jōṇī nor uṣṇa jōṇī, but śītōṣṇa jōṇī.
[751] Bhante! What is the nature of the birth (jōṇī) of the vāṇamantara devas (celestial beings) - is it śīta jōṇī, uṣṇa jōṇī, or śītōṣṇa jōṇī? [751 A.] Gautama! They have neither śīta jōṇī nor uṣṇa jōṇī, but śītōṣṇa jōṇī.
[752] The same applies to the jyōtiṣka (luminous) and vaimānika (celestial) devas as well.
[753 Q.] Bhante! Among these śīta jōṇika (cold-birthed) beings, uṣṇa jōṇika (hot-birthed) beings, śītōṣṇa jōṇika (cold-hot birthed) beings, and ajōṇika (non-birthed) beings, which ones are fewer, which ones are more, which ones are equal, and which ones are specially superior? [753 A.] Gautama! The śītōṣṇa jōṇika beings are the fewest, the uṣṇa jōṇika beings are innumerably more than them, the ajōṇika beings are infinitely more than the uṣṇa jōṇika, and the śīta jōṇika beings are infinitely more than the ajōṇika.
________________ 518] [प्रज्ञापनासूत्र 746. सम्मुच्छिममणुस्साणं भंते ! कि सीता जोणी उसिणा जोणी सीतोसिणा जोणी ? गोयमा ! तिविहा वि जोणी। [749 प्र.] भगवन् ! सम्मूच्छिम मनुष्यों की क्या शीत योनि होती है, उष्ण योनि होती है अथवा शीतोष्ण योनि होती है ? [746 उ.] गौतम ! उनको तीनों प्रकार की योनि होती है। 750. गम्भवक्कंतियमणुस्साणं भंते ! कि सीता जोणी उसिणा जोणी सीतोसिणा जोणी? गोयमा ! नो सीता जोणी, नो उसिणा जोणी, सीतोसिणा जोणो। [750 प्र.] भगवन् ! गर्भज मनुष्यों की क्या शीत योनि होती है, उष्ण योनि होती है अथवा शीतोष्ण योनि होती है ? [750 उ.] गौतम ! उनकी न तो शीत योनि होती, न उष्ण योनि होती है, किन्तु शीतोष्ण योनि होती है। 751. वाणमंतरदेवाणं भंते ! कि सीता जोणी उसिणा जोणी सीतोसिणा जोणी ? गोयमा ! नो सीता, नो उसिणा जोणी, सीतोंसिणा जोणी / [751 प्र.] भगवन् ! वाणव्यन्तर देवों की क्या शीत योनि होती है, उष्ण योनि होती है, अथवा शीतोष्ण योनि होती है ? [751 उ.] गौतम ! उनकी न तो शीत योनि होती है और न ही उष्ण योनि होती है, किन्तु शीतोष्ण योनि होती है। 752. जोइसिय-वेमाणियाण वि एवं चेव / [752] इसी प्रकार ज्योतिष्कों और वैमानिक देवों की (योनि के विषय में समझना चाहिए)। 753. एतेसि णं भंते ! जीवाणं सीतजोणियाणं उसिणजोणियाणं सीतोसिणजोणियाणं अजोणियाण य कतरे कतरेहितो प्रध्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? ___ गोयमा ! सम्वत्थोवा जीवा सीतोसिणजोणिया, उसिणजोणिया असंखेज्जगुणा, प्रजोणिया अणंतगुणा, सीतजोणिया अणंतगुणा / 1 // [753 प्र.] भगवन् ! इन शीतयोनिक जीवों, उष्णयोनिक जीवों, शीतोष्णयोनिक जीवों तथा अयोनिक जीवों में से कौन किनसे अल्प हैं, बहुत हैं, तुल्य हैं, अथवा विशेषाधिक हैं ? [753 उ.] गौतम ! सबसे थोड़े जीव शीतोष्णयोनिक हैं, उष्णयोनिक जीव उनसे असंख्यातगुणे अधिक हैं, उनसे अयोनिक जीव अनन्तगुणे अधिक हैं और उनसे भो शोतयोनिक जीव अनन्तगुणे हैं // 1 // विवचन-नरयिकादि जीवों का शोतादि त्रिविध योनियों की दृष्टि से विचार–प्रस्तुत सोलह सूत्रों (सू. 738 से 753 तक) में नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक चौबीस दण्डकवर्ती जीवों का शीत, उष्ण एवं शीतोष्ण, इन त्रिविध योनियों की दृष्टि से विचार किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org