________________ नौवा योनिपद ] [523 [765 प्र.] भगवन् ! नैरयिकों को क्या संवृत योनि होती है, विवृत योनि होती है, अथवा संवृत-विवृत योनि होती है ? [765 उ.] गौतम ! नैरयिकों की योनि संवृत होती है, परन्तु विवृत नहीं होती और न ही संवृत-विवृत होती है। 766. एवं जाव वणस्सइकाइयाणं / [766] इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीवों तक (की योनि के विषय में कहना चाहिए)। 767. बेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा ! नो संवुडा जोणी, वियडा जोणी, णो संवुडवियडा जोणो / [767 प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों की योनि संवृत होती है, विवृत होती या संवृत-विवृत होती है ? [767 उ.] गौतम ! उनको योनि संवृत नहीं होती, (किन्तु) विवृत होती है, (पर) संवृतविवृत योनि नहीं होती। 768. एवं जाव चरिदियाणं / [768] इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय जीवों तक (की योनि के विषय में समझ लेना चाहिए / ) 766. सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं सम्मुच्छिपमणुस्साण य एवं चेव / [766] सम्मूच्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक एवं सम्मूच्छिम मनुष्यों की (योनि के विषय में भी इसी प्रकार समझना चाहिए / ) 770. गम्भवक्कतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं गम्भवक्कंतियमणुस्साण य नो संवडा जोणी, नो वियडा जोणी, संवुडवियडा जोणी / [770] गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों और गर्भज मनुष्यों की योनि संवृत नहीं होती और न विवृत योनि होती है, किन्तु संवृत-विवृत होती है / 771. बाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियाणं जहा नेरइयाणं / [771] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों की (योनि के सम्बन्ध में) नरयिकों की (योनि की) तरह समझना चाहिए / 772. एतेसि णं भंते ! जीवाणं संवुडजोणियाणं वियडजोणियाणं संवुडवियडजोणियाणं प्रजोणियाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? / ___ गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा संबुडवियउजोणिया, वियडजोणिया असंखेज्जगुणा, प्रजोणिया अणंतगुणा, संवुडजोणिया अणंतगुणा / 3 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org