Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [ 513 अष्टम संज्ञापन - गोयमा ! सव्वस्थोवा देवा प्राहारसण्णोवउत्ता, भयसण्णोवउत्ता संखेज्जगुणा, मेहुणसण्णोवउत्ता संखेज्जगुणा, परिग्गहसण्णोषउत्ता संखेज्जगुणा / ॥पण्णवणाए भगवईए पटुमं सण्णापयं समत्तं // [737 प्र.] भगवन् ! इन प्राहारसंज्ञोपयुक्त यावत् परिग्रहसंज्ञोपयुक्त देवों में से कौन किनसे अल्प, बहत, तुल्य अथवा विशेषाधिक होते हैं ? [737 उ.] गौतम ! सबसे थोड़े पाहारसंज्ञोपयुक्त देव हैं, (उनकी अपेक्षा) भयसंज्ञोपयुक्त देव संख्यातगुणे हैं, (उनको अपेक्षा) मैथुनसंज्ञोपयुक्त देव संख्यातगुणे हैं और उनसे भी संख्यातगुणे परिग्रहसंज्ञोपयुक्त देव हैं। विवेचन-देवों में पाई जाने वाली संज्ञानों और उनके अल्पबहुत्व का विचार-प्रस्तुत दो सूत्रों (सू. 736-737) में देवों में बाहुल्य से परिग्रहसंज्ञा का तथा प्रान्तरिक अनुभव की अपेक्षा से चारों ही संज्ञाओं के निरूपण पूर्वक चारों संज्ञाओं की अपेक्षा से उनके अल्पबहुत्व का विचार किया गया है। देवों में बाहत्य से परिग्रहसंज्ञा क्यों?—देव अधिकांशतः परिग्रहसंज्ञोपयुक्त होते हैं। क्योंकि परिग्रहसंज्ञा के जनक कनक, मणि, रत्न आदि में उन्हें सदा आसक्ति बनी रहती है / देवों का चारों संजात्रों की अपेक्षा से अल्पबहत्व—सबसे कम पाहारसंज्ञोपयुक्त देव होते हैं, क्योंकि देवों की प्राहारेच्छा का विरहकाल बहुत लम्बा होता है तथा आहारसंज्ञा के उपयोग का काल बहुत थोड़ा होता है। अतएव पृच्छा के समय वे थोड़े ही पाए जाते हैं। आहारसंज्ञोपयुक्त देवों की अपेक्षा भयसंज्ञोपयुक्त देव संख्यातगुणे अधिक होते हैं, क्योंकि भयसंज्ञा बहुत-से देवों को चिरकाल तक रहती है। भयसंज्ञोपयुक्त देवों की अपेक्षा मैथुनसंज्ञा वाले देव संख्यातगुणे अधिक और उनसे भी परिग्रहसंज्ञोपयुक्त देव संख्यातगुणे कहे गए हैं, कारण पहले बताया जा चुका है / ' / / प्रज्ञापनासूत्र : अष्टम संज्ञापद समाप्त / 1. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक 224 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org