________________ छठा व्युत्क्रान्तिपद ] [491 अष्टम आकर्षद्वार : सर्वजीवों के षड्विध आयुष्यबन्ध, उनके आकर्षों की संख्या और अल्पबहुत्व 684. कतिविधे गं भंते ! पाउयबंधे पणते? ____ गोयमा ! छविधे पाउयबंधे पण्णत्ते / तं जहा--जातिणामणिहत्ताउए 1 गइनामनिहत्ताउए 2 ठितीनामनिहत्ताउए 3 प्रोगाहणाणामणिहत्ताउए 4 पदेसणामणिहत्ताउए 5 अणुभावणामणिहत्ताउए 6 / [684 प्र.] भगवन् ! आयुष्य का बन्ध कितने प्रकार का कहा है ? [684 उ.] गौतम! आयुष्यबन्ध छह प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है(१) जातिनामनिधत्तायु, (2) गतिनामनिधत्तायु, (3) स्थितिनामनिधत्तायु, (4) अवगाहनानामनिधत्तायु, (5) प्रदेशनामनिधत्तायु और (6) अनुभावनामनिधत्तायु / 685. नेरइयाणं भंते ! कतिविहे पाउयबंधे पण्णते ? गोयमा ! छब्बिहे पाउयबंधे पण्णत्ते / तं जहा-जातिनामनिहत्ताउए 1 गतिणामनिहत्ताउए 2 ठितीणामणिहत्ताउए 3 प्रोगाहणानामनिहत्ताउए 4 पदेसणामनिहत्ताउए 5 प्रणभावनामनिहत्ताउए 6 / [685 प्र.] भगवन् ! नैरयिकों का आयुष्यबन्ध कितने प्रकार का कहा है ? [685 उ.] गौतम ! (नै रयिकों का) आयुष्यबन्ध छह प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार-(१) जातिनामनिधत्तायु, (2) गतिनामनिधत्तायु, (3) स्थितिनामनिधत्तायु, (4) अवगाहनानामनिधत्तायु, (5) प्रदेशनामनिधत्तायु और (6) अनुभावनामनिधत्तायु / 686. एवं जाव वेमाणियाणं / [686] इसी प्रकार (मागे असुरकुमारों से लेकर) यावत् वैमानिकों तक के श्रायुष्यबन्ध की प्ररूपणा समझनी चाहिए। 687. जीवा णं भंते ! जातिणामणिहत्ताउयं कतिहि आगरिसेहि पकरेंति ? गोयमा ! जहण्णणं एक्केण वा दोहि वा तीहिं बा, उक्कोसेणं अहि / [687 प्र.] भगवन् ! जीव जातिनामनिधत्तायु को कितने आकर्षों से बांधते हैं ? [687 उ.] गौतम ! (जीव जातिनामनिधत्तायु को) जघन्य एक, दो या तीन अथवा उत्कृष्ट आठ आकर्षों से (बांधते हैं।) 688. नेरइया णं भंते ! जाइनामनिहत्ताउयं कतिहिं प्रागरिसेहि पकरेंति ? गोयमा ! जहणणं एक्केण वा दोहि वा तीहिं वा, उक्कोसेणं प्रदहि / [688 प्र.] भगवन् ! नारक जातिनामनिधत्तायु को कितने प्राकर्षों से बांधते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org