________________ 482] [ प्रज्ञापनासूत्र कर) कहाँ जाते हैं ? कहाँ उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं अथवा तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं ? मनुप्यों में उत्पन्न होते हैं या देवों में उत्पन्न होते हैं ? [666-1 उ.] गौतम ! (नरयिक जीव अनन्तर उद्वर्तन करके) नैरयिकों में उत्पन्न नहीं होते (किन्तु) तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं या मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं; (किन्तु) देवों में उत्पन्न नहीं होते हैं। _[2] जति तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति किं एगिदिय जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति ? गोयमा ! नो एगिदिएसु जाव नो चरिदिएसु उववज्जति, पंचिदिएसु उववज्जति / [666-2 प्र.] (भगवन् ! ) यदि (वे) तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं तो क्या एकेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होते हैं, (अथवा) यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं ? [666-2 उ.] गौतम ! (वे) न तो एकेन्द्रियों में और न ही द्वि-त्रि-चतुरिन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होते हैं, (किन्तु) पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं / [3] एवं जेहितो उववानो भणितो तेसु उव्वट्टणा वि भाणितव्वा / णवरं सम्मुच्छिमेसु ण उववज्जंति। [666-3] इस प्रकार जिन-जिनसे उपपात कहा गया है, उन-उनमें ही उद्वर्त्तना भी कहनी चाहिए / विशेष यह है कि वे सम्मूच्छिमों में उत्पन्न नहीं होते / 667. एवं सन्यपुढवीसु भाणितव्वं / नवरं आहेसत्तमानो मणुस्सेसु ण उववति / [667] इसी प्रकार समस्त (नरक-)पृथ्वियों में उद्वर्तना का कथन करना चाहिए / विशेष बात यह है कि सातवीं नरकपृथ्वी से मनुष्यों में नहीं उत्पन्न होते / 668. [1] असुरकुमारा णं भंते ! अणंतरं उन्वट्टित्ता कहिं गच्छंति ? कहि उववज्जति ? कि नेरइएसु उववज्जति ? जाव देवेसु उववज्जति ? गोयमा ! णो नेरइएसु उववज्जति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति, मणुस्सेसु उधवजंति, नो देवेसु उववज्जति / [668-1 प्र.] भगवन् ! असुरकुमार साक्षात् (अनन्तर) उद्वर्त्तना करके कहाँ जाते हैं ? कहाँ उत्पन्न होते हैं ? क्या (वे) नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं ? (अथवा) यावत् देवों में उत्पन्न होते हैं ? [668-1 उ.] गौतम ! (वे) नैरयिकों में उत्पन्न नहीं होते, (किन्तु) तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं किन्तु देवों में उत्पन्न नहीं होते। [2] जइ तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति किं एगिदिएसु जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जति? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org