________________ 486 ) [ प्रज्ञापनासूत्र [672-5 उ.] गौतम ! (वे) दोनों में ही उत्पन्न होते हैं / [6] एवं जहा उववानो तहेव उव्वट्टणा वि भाणितव्या। नवरं प्रकम्मभूमग-अंतरदीवगअसंखेज्जवासाउएसु वि एते उववज्जति ति भाणितव्वं / [672-6] इसी प्रकार जैसा इनका उपपात कहा, वैसी ही इनकी उद्वर्तना भी कहनी चाहिए। विशेषतया अकर्मभूमिज, अन्तर्वीपज और असंख्यातवर्षायुष्क मनुष्यों में भी ये उत्पन्न होते हैं, यह कहना चाहिए। [6] जति देवेसु उववज्जति किं भवणवतोसु उववज्जति ? जाव कि वेमाणिएसु उववज्जति ? गोयमा ! सच्चेसु चेव उववति / [672-7 प्र.] (भगवन् ! ) यदि (वे) देवों में उत्पन्न होते हैं तो क्या भवनपति देवों में उत्पन्न होते हैं ? (अथवा) यावत् वैमानिकों में भी उत्पन्न होते हैं ? [672-7 उ.] गौतम ! (वे) सभी (प्रकार के) देवों में उत्पन्न होते हैं। [8] जति भवणवतोसु उववज्जति किं असुरकुमारेसु उववज्जति ? जाव थणियकुमारेसु उववज्जति ? __ गोयमा ! सम्वेसु चेव उववति / __[672-8 प्र.] (भगवन् ! ) यदि (वे) भवनपति देवों में उत्पन्न होते हैं तो क्या असुरकुमारों में उत्पन्न होते हैं ? (अथवा) यावत् स्तनित्कुमारों में उत्पन्न होते हैं ? [672-8 उ.] गौतम ! (वे) सभी (भवनपतियों) में उत्पन्न होते हैं। [6] एवं वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएसु निरंतरं उववज्जति जाव सहस्सारो कप्पो त्ति / [672-9) इसी प्रकार वाणव्यन्तरों, ज्योतिष्कों और सहस्रारकल्प तक के वैमानिक देवों में निरन्तर उत्पन्न होते हैं / 673. [1] मणुस्सा णं भंते ! अणंतरं उच्वट्टित्ता कहिं गच्छति ? कहि उववज्जति ? कि नेरइएसु उववज्जति जाव देवेसु उबवज्जति ? गोयमा! नेरइएसु वि उववज्जंति जाव देवेसु वि उववज्जति / [673-1 प्र. भगवन् ! मनुष्य अनन्तर उद्वर्तन करके कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं ? (अथवा) यावत् देवों में भी उत्पन्न होते हैं ? _ [673-1 उ.] गौतम ! (बे) नैरयिकों में भी उत्पन्न होते हैं, यावत् देवों में भी उत्पन्न होते हैं। [2] एवं निरंतरं सम्वेसु ठाणेसु पुच्छा। गोयमा! सव्वेसु ठाणेसु उववज्जति, ण कहिचि पडिसेहो कायवो जाव सम्वद्वसिद्धदेवेसु वि उववज्जंति, प्रत्थेगतिया सिझंति बुझंति मुच्चंति परिणिवायंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org