Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ छठा व्युत्क्रान्तिपद ] [ 485 गोयमा ! नेरइएसु उववज्जति जाव देवेसु उववज्जति / [672-1 प्र.] भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक अनन्तर उद्वर्तना करके कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? क्या (वे) नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, (अथवा) यावत् देवों में उत्पन्न होते हैं ? _ 672-1 उ.] गौतम ! (वे) नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, यावत् देवों में भी उत्पन्न होते हैं। [2] जदि जेरइएसु उववज्जति किं रयणप्पभापुढविनेरइएसु उववज्जति जाव आहेसत्तमापुढविनेरइएसु उववज्जति ? गोयमा! रयणप्पभापुढ विनेरइएसु वि उववज्जंति जाव अहेसत्तमापुढविनेरइएसु वि उववज्जति। [672-2 प्र.] (भगवन् !) यदि (वे) नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, तो क्या रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं अथवा यावत् अधःसप्तमीपृथ्वी के नैरयिकों में (से किन्हीं में) उत्पन्न होते हैं ? [672-2 उ.] गौतम ! (वे) रत्तप्रभापृथ्वी नरयिकों में भी उत्पन्न होते हैं, यावत् अध:सप्तमीपृथ्वी के नैरयिकों में भी उत्पन्न होते हैं / [3] जइ तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति किं एगिदिएसु जाव पंचिदिएसु ? गोयमा ! एगिदिएसु वि उववज्जति जाव पंचेंदिएसु वि उववज्जंति / / 672-3 प्र.] (भगवन् ! ) यदि (वे) तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं तो क्या एकेन्द्रियों में यावत् पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं ? [672-2 उ.] गौतम ! (वे) एकेन्द्रियों में भी उत्पन्न होते हैं, यावत् पंचेन्द्रियों में भी उत्पन्न होते हैं। [4] एवं जहा एतेसि चेव उववानो उबट्टणा वि तहेव भाणितव्वा / नवरं असंखेज्जवासाउएसु वि एते उववज्जति / [672-4] यों जैसा इनका उपपात कहा है, वैसी ही इनकी उद्वर्तना भी कहनी चाहिए। विशेषता यह है कि ये असंख्यातवर्षों की आयु वालों में भी उत्पन्न होते हैं / [5] जति मणुस्सेसु उववज्जति किं सम्मुच्छिममणुस्सेसु उववज्जति गम्भवक्कंतियमणूसेसु उववज्जंति ? गोयमा ! दोसु वि उववज्जंति / [672-5 प्र.] (भगवन् ! ) यदि (वे) मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं तो क्या सम्मूच्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं अथवा गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org