________________ 480] [ प्रज्ञापनासूत्र 664. एवं गेबेज्जगदेवा वि / णवरं प्रसंजत-संजतासंजतेहितो वि एते पडिसेहेयन्वा / [664] इसी प्रकार (नौ) ग्रेवेयकदेवों के उपपात के विषय में भी समझना चाहिए / विशेषता यह है कि असंयतों और संयतासंयतों से इनकी (अवेयकों की) उत्पत्ति का निषेध करना चाहिए। 665. [1] एवं जहेब गेवेज्जगदेवा तहेव अणुत्तरोववाइया वि / णवरं इमं णाणतंसंजया चेव / - [665-1] इसी प्रकार जैसी (वक्तव्यता) वेयक देवों की उत्पत्ति (के विषय में) कही, वैसी ही उत्पत्ति (-वक्तव्यता) पांच अनुत्तर विमानों के देवों की समझनी चाहिए। विशेष यह है कि संयत ही अनुत्तरौपपातिक देवों में उत्पन्न होते हैं / [2] जति संजतसम्मद्दिटिपज्जत्तसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणुस्से हितो उववज्जंति कि पमत्तसंजतसम्मद्दिटिपज्जत्तएहितो अपमत्तसंजतेहितो उववज्जति ? गोयमा ! अपमत्तसंजएहितो उववजंति, नो पमत्तसंजएहितो उबवति / [665-2] (भगवन् !) यदि (वे) संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो क्या वे प्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं या अप्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? 1665-2 उ.] गौतम ! (पूर्वोक्त तथारूप) अप्रमत्तसंयतों से (वे) उत्पन्न होते हैं किन्तु (तथारूप) प्रमत्तसंयतों से उत्पन्न नहीं होते / [3] जति प्रपमत्तसंजएहितो उववज्जति किं इड्डिपत्तप्रपमत्तसंजतेहितो उववज्जति ? प्रणिडिपत्तप्रपमत्तसंजतेहितो उववज्जति ? गोयमा! दोहितो वि उववज्जंति / दारं 5 // [665-3 प्र.] (भगवन् ! ) यदि वे (अनुत्तरौपपातिक देव) (पूर्वोक्त विशेषणयुक्त) अप्रमत्तसंयतों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या ऋद्धिप्राप्त-अप्रमत्तसंयतों से उत्पन्न होते हैं, (अथवा) अनृद्धिप्राप्तअप्रमत्तसंयतों से (वे) उत्पन्न होते हैं ? [665-3 उ.] गौतम ! (वे) उपर्युक्त दोनों (ऋद्धिप्राप्त-अप्रमत्तसंयतों तथा अनृद्धि प्राप्तअप्रमत्तसंयतों) से भी उत्पन्न होते हैं। -पंचम कुतोद्वार // 5 // विवेचन--पंचम कुतोद्वार : नारकादि चारों गतियों के जीवों की पूर्वभवों (प्रागति) से उत्पत्ति की प्ररूपणा–प्रस्तुत सत्ताईस सूत्रों में कुतः (कहाँ से या किन-किन भवों से) द्वार के माध्यम से जीवों की उत्पत्ति के विषय में विस्तृत प्ररूपणा की गई है। किनकी उत्पत्ति, किन-किनसे ? का क्रम-इस द्वार का क्रम इस प्रकार है- 1. सामान्य नारकों की उत्पत्ति किन-किनसे ?, 2. रत्नप्रभादि पृथ्वियों के नारकों की उत्पत्ति, 3. असुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org