________________ छठा व्युत्क्रान्तिपद] [ 479 [662-5 प्र. (भगवन्) यदि संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों से (वे मानत देव) उत्पन्न होते हैं, तो क्या (वे) पर्याप्तकों से या अपर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं ? [662-5 उ.] गौतम ! (वे) पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं. (किन्तु) अपर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न नहीं होते। [6] जति पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणसेहितो उववज्जति कि सम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगेहितो उववज्जति ? मिच्छद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउएहितो उववज्जति ? सम्मामिच्छद्दिष्टुिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणुस्सेहितो उववज्जति ? गोयमा ! सम्मद्दिटुिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्सेहितो वि उववज्जति, मिच्छदिटिपज्जत्तरोहितो वि उववज्जति, णो सम्मामिच्छद्दिटिपज्जत्तरोहितो उववज्जति / [662-6 प्र.] (भगवन् ! ) यदि (वे) पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या (वे) सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? (या) मिथ्यादष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायूष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? (अथवा) सम्यमिथ्यादृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? [662-6 उ.] गौतम ! सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से भी (वे) उत्पन्न होते हैं, मिथ्यादृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से भी उत्पन्न होते हैं; (किन्तु) सम्यगमिथ्यादृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न नहीं होते। _[7] जति सम्मििटपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणुस्सेहितो उववज्जंति कि संजतसम्मट्ठिीहितो? प्रसंजतसम्मद्दिटिपज्जत्तहितो ? संजयासंजयसम्मद्दिटिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउहितो उववज्जति ? गोयमा ! तोहितो वि उबवज्जंति / [662-7 प्र.] (भगवन् ! ) यदि (वे) सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो क्या (वे) संयत सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं या असंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं अथवा संयतासंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? / [662-7 उ.] गौतम ! (वे आनत देव) (उपर्युक्त) तीनों से ही (संयतसम्यग्दृष्टियों से, असंयतसम्यग्दृष्टियों से तथा संयतासंयतसम्यग्दृष्टियों से) उत्पन्न होते हैं / 663. एवं जाव अच्चुओ कप्पो / [663] अच्युतकल्प के देवों तक (के उपपात के विषय में) इसी प्रकार कहना चाहिए / 'nofic. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org