________________ छठा व्युत्क्रान्तिपद [ 477 658. जोइसियदेवा गं भंते ! कतोहितो उववज्जति ? गोयमा! एवं चेव / नवरं सम्मच्छिम प्रसंखेज्जवासाउयखहयर-अंतरदीवमणुस्सवज्जेहितो उववज्जावेयवा। [658 प्र] भगवन् ! ज्योतिष्क देव किन (कहाँ) से (माकर) उत्पन्न होते हैं ? [658 उ.] गौतम ! इसी प्रकार (ज्योतिष्क देवों का उपपात भी पूर्ववत् असुरकुमारों के उपपात के समान ही) समझना चाहिए। विशेषता यह है कि ज्योतिष्कों की उत्पत्ति सम्भूच्छिम असंख्यातवर्षायुष्क-खेचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों को तथा अन्तीपज मनुष्यों को छोड़कर कहनी चाहिए / अर्थात् इनसे निकल कर कोई जीव सीधा ज्योतिष्क देव नहीं होता।। 656. वेमाणिया णं भंते ! कतोहितो उववज्जंति ? कि रइएहितो, तिरिक्खजोणिएहितो, मणुस्से हितो, देवेहितो उववज्जति ? गोयमा ! णो रइएहितो उववज्जंति, पंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति, मणुस्सेहितो उववज्जति, णो देवेहितो उववज्जति / एवं चेव वेमाणिया वि सोहम्मीसाणगा भाणितचा / {659 प्र.] भगवन् ! वैमानिक देव किनसे उत्पन्न होते हैं ? क्या (वे) नैरयिकों से या तिर्यञ्चयोनिकों से अथवा मनुष्यों से या देवों से उत्पन्न होते हैं ? [656 उ.] गौतम ! (वे) नारकों से उत्पन्न नहीं होते, (किन्तु) पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों से तथा मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं / देवों से उत्पन्न नहीं होते। इसी प्रकार सौधर्म और ईशान कल्प के वैमानिक देवों (की उत्पत्ति के विषय में) कहना चाहिए। 660. एवं सणंकुमारगा वि / णवरं असंखेज्जवासाउयप्रकम्मभूमगवज्जेहितो उववज्जति / [660] सनत्कुमार देवों के उपपात के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेषता यह है कि ये असंख्यातवर्षायुष्क अकर्मभूमिकों को छोड़कर (पूर्वोक्त सबसे) उत्पन्न होते हैं / 661. एवं जाव सहस्सारकप्पोवगवेमाणियदेवा भाणितव्वा / {661] सहस्रारकल्प तक (अर्थात् माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र और सहस्रार कल्प) के देवों का उपपात भी इसी प्रकार कहना चाहिए। 662. [1] प्राणयदेवा गं भंते ! कतोहितो उववज्जति ? कि नेरइएहितो जाव देवेहितो उववज्जति? गोयमा ! नो नेरइएहितो उववज्जति, नो तिरिक्खजोणिएहितो उधवजंति, मणुस्से हितो उववज्जंति, नो देवेहितो। [662-1 प्र.] भगवन् ! अानत देव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से (अथवा) यावत् देवों से उत्पन्न होते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org