________________ छठा व्युत्क्रान्तिपद ] [475 [655-1 उ.] गौतम ! (वे) नैरयिकों से भी उत्पन्न होते हैं, तिर्यञ्चयोनिकों से भी, मनुष्यों से भी और देवों से भी उत्पन्न होते हैं। [2] जति नेरइएहितो उववज्जति किं रयणप्पभापुढविनेरइएहितो उववज्जति ? जाव अहेसत्तमापुढविनेरइएहितो उववज्जति ? गोयमा ! रयणप्पभापुढविनेरइएहितो वि जाव असत्तमापुढविनेरइएहितो वि उववज्जति / [655-2 प्र.] (भगवन् ! ) यदि नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, अथवा यावत् अधःसप्तमी (तमस्तमा) पृथ्वी (तक) के नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं ? __[655-2 उ.] गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से भी उत्पन्न होते हैं, यावत् अधःसप्तमीपृथ्वी के नैरयिकों से भी उत्पन्न होते हैं / [3] जति तिरिक्खजोणिएहितो उबवज्जति किं एगिदिएहितो उववजंति ? जाव पंचेंदिएहिंतो उववज्जंति ? गोयमा! एगिदिएहितो वि जाव पंचेंदिएहितो वि उववज्जति / 655.3 प्र.] (भगवन् !) यदि तिर्यञ्चयोनिकों से (वे) उत्पन्न होते हैं तो क्या एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, (या) यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं ? [655-3 उ.] गौतम ! (वे) एकेन्द्रिय तिर्यञ्चों से भी यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से भी उत्पन्न होते हैं। [4] जति एगिदिएहितो उववज्जति किं पुढविकाइएहितो उववज्जति ? एवं जहा पुढविकाइयाणं उबवालो भणितो तहेव एएसि पि भाणितव्यो / नवरं देवेहितो जाव सहस्सारकप्पोवगवेमाणियदेवेहितो वि उववज्जति, नो प्राणयकम्पोवगवेमाणियदेवेहितो जाव अच्चुए. हितो वि उववति / [655-4 प्र.] (भगवन् ! ) यदि (वे) एकेन्द्रियों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं या यावत् वनस्पतिकायिकों (तक) से उत्पन्न होते हैं ? [655.4 उ.] गौतम ! इसी प्रकार जैसे पृथ्वीकायिकों का उपपात कहा है, वैसे ही इनका (पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों का) भी उपपात कहना चाहिए। विशेष यह है कि देवों से-यावत सहस्रारकल्पोपपन्न वैमानिक देवों तक से भी उत्पन्न होते हैं, किन्तु मानतकल्पोपपन्न वैमानिक देवों से लेकर अच्युतकल्पोपपन्न वैमानिक देवों तक से (वे) उत्पन्न नहीं होते। 656. [1] मणस्सा णं भंते ! कतोहितो उधवज्जति ? किं नेरइएहितो जाव देवेहितो उववज्जति ? - गोयमा ! नेरइएहितो वि उववज्जति जाव देवेहितो वि उववति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org