________________ छठा व्युत्क्रान्तिपदा [650-12 उ.] (गौतम !) शेष जो (कथन) नैरयिकों के (उपपात के) सम्बन्ध में (सू.. 639-4 से 24 तक में) कहा है. वही (पृथ्वीकायिक आदि एकेन्द्रियों के सम्बन्ध में समझ लेना चाहिए।) विशेष यह है कि (ये) अपर्याप्तक (कर्मभूमिज गर्भज) मनुष्यों से भी उत्पन्न होते हैं / [13] जति देवेहितो उववति किं भवणवासि-वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएहितो? गोयमा ! भवणवासिदेवेहितो वि उववज्जति जाव वेमाणियदेहितो वि उववज्जति / [650-13 प्र.] (भगवन् ! ) यदि देवों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क अथवा वैमानिक देवों से उत्पन्न होते हैं ? [650-13 उ.] गौतम ! भवनवासी देवों से भी उत्पन्न होते हैं, यावत् वैमानिक देवों से भी उत्पन्न होते हैं। [14] जति भवणवासिदेवेहितो उववज्जति किं असुरकुमारदेवहितो जाव थणियकुमारदेवहितो उववज्जति। गोयमा ! असुरकुमारदेहितो वि जाव थणियकुमारदेवेहितो वि उववज्जति / [650-14 प्र.] (भगवन् ! ) यदि (ये) भवनवासी देवों से उत्पन्न होते हैं तो असुरकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक (दस प्रकार के भवनवासी देवों में से) किनसे उत्पन्न होते हैं ? [650-14 उ.] गौतम ! (ये) असुरकुमार देवों से यावत् स्तनितकुमार देवों तक से भी (दस ही प्रकार के भवनवासी देवों से) उत्पन्न होते हैं / [15] जति वाणमंतरेहितो उववज्जति किं पिसाएहितो जाव गंधर्वहितो उववज्जति ? गोयमा! पिसाएहितो वि जाव गंधर्वहितो वि उववज्जति / 650-15 प्र.] (भगवन् ! ) यदि (वे) वाणव्यन्तर देवों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या पिशाचों से यावत् गन्धों से उत्पन्न होते हैं ? [650-15 उ.] गौतम ! (वे) पिशाचों से यावत् गन्धर्वो (तक के सभी प्रकार के वाणव्यन्तर देवों) से उत्पन्न होते हैं / [16] जइ जोइसियदेवेहितो उववज्जति किं चंदविमाहितो जाव ताराविमाणेहितो उववज्जति ? गोयमा !चंदविमाणजोइसियदेवेहितो वि जाव ताराविमाणजोइसियदेवेहितो वि उववज्जति / [650-16 प्र.] (भगवन ! ) यदि (वे) ज्योतिष्क देवों से उत्पन्न होते हैं तो क्या चन्द्रविमान के ज्योतिष्क देवों से उत्पन्न होते हैं अथवा यावत् ताराविमान के ज्योतिष्क देवों से उत्पन्न होते हैं ? [650-16 उ ] गौतम! चन्द्रविमान के ज्योतिष्क देवों से भी उत्पन्न होते हैं तथा यावत् ताराविमान के ज्योतिष्कदेवों से भी उत्पन्न होते हैं / [17] जति वेमाणियदेवेहिंतो उववज्जति किं कप्पोवगवेमाणियदेवेहितो उववज्जति ? फप्पातीतगवेमाणियदेवेहितो उववज्जति ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org