________________ छठा व्युत्क्रान्तिपद] [471 [650-2 उ.] गौतम ! (वे) एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से भी उत्पन्न होते हैं / [3] जति एगिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किं पुढविकाइएहितो जाव वणफइकाइएहितो उववज्जति ? गोयमा ! पुढविकाइएहितो वि जाव वणष्फइकाइएहितो वि उववज्जति / [650-3 प्र] (भगवन् ! ) यदि एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से (वे) उत्पन्न होते हैं तो क्या पृथ्वीकायिकों से यावत् वनस्पतिकायिकों से (आकर) उत्पन्न होते हैं ? [650-3 उ.] गौतम ! वे पृथ्वीकायिकों से भी यावत् वनस्पतिकायिकों से भी (पाकर) उत्पन्न होते हैं। [4] जति पुढविकाइएहितो उववति किं सुहमपुढविकाइएहितो उववज्जति ? बादरपुढविकाइएहितो उववज्जति ? गोयमा ! दोहितो वि उववति / 6650-4 प्र. (भगवन् ! ) यदि पृथ्वीकायिकों से (पाकर) उत्पन्न होते हैं तो क्या (वे) सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं या बादर पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं ? [650-4 उ] गौतम ! (वे उपर्युक्त) दोनों से उत्पन्न होते हैं / [5] जति सुहमपुढविकाइएहितो उववज्जति किं पज्जतसुहमपुढविकाइएहितो उववज्जति ? अपज्जत्तसुहमपुढविकाइएहितो उववज्जति ? गोयमा ! दोहितो वि उववज्जति / [650-5 प्र. (भगवन् ! ) यदि सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों से (पाकर वे) उत्पन्न होते हैं तो क्या पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं अथवा अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं ? [650-5 उ.] गौतम ! (वे उपर्युक्त) दोनों से ही (प्राकर) उत्पन्न होते हैं / [6] जति बादरपुढविकाइएहितो उववज्जति किं पज्जत्तएहितो अपज्जत्तरहितो उववज्जति ? गोयमा ! दोहितो वि उववज्जंति / {650-6 प्र.] (भगवन् ! ) यदि बादर पृथ्वीकायिकों से (आकर) वे उत्पन्न होते हैं तो क्या पर्याप्त बादर पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त बादर पृथ्वीकायिकों से उत्पन्न होते हैं ? [650-6 उ.] गौतम ! (पूर्वोक्त) दोनों से ही (वे) उत्पन्न होते हैं / [7] एवं जाव वणप्फतिकाइया चउक्कएणं भेदेणं उववाएयवा। {650-7] इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिकों तक चार-चार भेद करके उनके उपपात के विषय में कहना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org