________________ 474 ] [प्रज्ञापनासूत्र गोयमा ! कप्पोवगवेमाणियदेवेहितो उववज्जति, नो कप्पातीयवेमाणियदेवेहितो उववज्जति / [650-17 प्र.] (भगवन् !) यदि वैमानिक देवों से उत्पन्न होते हैं तो क्या कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से उत्पन्न होते हैं या कल्पातीत वैमानिक देवों से उत्पन्न होते हैं ? _ [650-17 उ.] गौतम ! (वे) कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से उत्पन्न होते हैं, (किन्तु) कल्पातीत वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते। [18] जति कप्पोवगवेमाणियदेवेहितो उववज्जति कि सोहम्मेहिंतो जाव अच्चुएहितो उववज्जति। ___ गोयमा ! सोहम्मोसाणेहितो उववज्जंति, नो सणंकुमार जाव अच्चुएहितो उववति / _ [650-18 प्र.] (भगवन् ! ) यदि कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से उत्पन्न होते हैं तो क्या वे (पृथ्वीकायिक) सौधर्म (कल्प के देवों) से यावत् अच्युत (कल्प तक के) देवों से उत्पन्न होते हैं ? [650-18 उ.] गौतम ! (वे) सौधर्म और ईशान कल्प के देवों से उत्पन्न होते हैं, किन्तु सनत्कुमार से लेकर अच्युत कल्प तक के देवों से उत्पन्न नहीं होते। 651. एवं प्राउक्काइया वि। [651] इसी प्रकार अप्कायिकों की उत्पत्ति के विषय में भी कहना चाहिए। 652. एवं तेउ-वाऊ वि / नवरं देववहितो उववज्जति / [652] इसी प्रकार तेजस्कायिकों एवं वायुकायिकों की उत्पत्ति के विषय में समझना चाहिए / विशेष यह है कि (ये दोनों) देवों को छोड़कर (दूसरों-नारकों, तिर्यञ्चों तथा मनुष्यों-- से) उत्पन्न होते हैं। 653, वणस्सइकाइया जहा पुढधिकाइया / [653] वनस्पतिकायिकों की उत्पत्ति के विषय में कथन, पृथ्वीकायिकों के उत्पत्ति-विषयक कथन की तरह समझना चाहिए। 654. बेइंदिय-तेइंदिय-चउरेंदिया एते जहा तेउ-वाऊ देववहितो भाणितव्वा / [654] द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति तेजस्कायिकों और वायुकायिकों की उत्पत्ति के समान समझनी चाहिए / देवों को छोड़ कर (अन्यों-नारकों, तिर्यञ्चों तथा मनुष्यों से) इनकी उत्पत्ति कहनी चाहिए। 655. [1] पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! कतोहितो उववज्जति ? किं नेरइएहितो उववज्जति ? जाव देवेहितो उववज्जति ? गोयमा ! नेरइएहितो वि तिरिक्खजोणिएहितो वि मणूसे हितो वि देवेहितो वि उववज्जति / [655-1 प्र.] भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक कहाँ से (आकर) उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नारकों से उत्पन्न होते हैं, यावत् देवों से उत्पन्न होते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org