Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ छठा ध्युत्क्रान्तिपव ] [457 [628 उ.] गौतम ! (वे) जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात अथवा असंख्यात (उत्पन्न होते हैं।) 626 एवं णागकुमारा जाव थणियकुमारा वि भाणियव्वा। [626] इसी प्रकार नागकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक कहना चाहिए / 630. पुढविकाइया णं भंते ! एगसमएणं केवतिया उवबज्जति ? गोयमा ! अणुसमयं अविरहियं असंखेज्जा उववज्जति / [630 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? [630 उ.] गौतम ! (वे) प्रतिसमय विना विरह (अन्तर) के असंख्यात उत्पन्न होते हैं। 631. एवं जाव बाउकाइया / [631] इसी प्रकार वायुकायिक जीवों तक कहना चाहिए / 632. वणप्फतिकाइया णं भंते ! एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? गोयमा ! सट्टाणुववायं पडुच्च अणुसमयं प्रविरहिया अणंता उवधज्जति, परट्टाणुववायं पडुच्च अणुसमयं अविरहिया असंखेज्जा उववज्जंति / [632 प्र.] भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? [632 उ.] गौतम ! स्वस्थान (वनस्पतिकाय) में उपपात (उत्पत्ति) की अपेक्षा से प्रतिसमय बिना विरह के अनन्त (वनस्पतिजीव) उत्पन्न होते रहते हैं तथा परस्थान में उपपाल की अपेक्षा से प्रतिसमय बिना विरह के असंख्यात (वनस्पतिजीव) उत्पन्न होते हैं। 633. बेइंदिया णं भंते ! केवतिया एगसमएणं उववज्जति ? गोयमा ! जहण्णणं एगो वा दो वा तिष्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा। [633 प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? [633 उ.] गौतम ! (वे) जघन्य एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात (उत्पन्न होते हैं / ) 634. एवं तेइंदिया चरिदिया सम्मुच्छिमपंचेदियतिरिक्खजोणिया गब्भवक्कतियपंचेंदियतिरिक्खजोणिया सम्मुच्छिममणूसा वाणमंतर-जोइसिय-सोहम्मोसाण-सणंकुमार-माहिद-बंभलोयलंतग-सुक्क सहस्सारकप्पदेवा, एते जहा नेरइया। [634] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, सम्मूच्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक, गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक, सम्मूच्छिम मनुष्य, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क, सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, शुक्र एवं सहस्रार कल्प के देव, इस सब की प्ररूपणा नैरयिकों के समान समझनी चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org