________________ 464] [प्रज्ञापनासूत्र / [639-15 उ.] गौतम ! पर्याप्तक-गर्भज-उर:परिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से अपर्याप्तक-गर्भज-उर:परिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न नहीं होते। / [16] जति भुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति कि सम्मुच्छिमभुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिरहितो उववज्जति ? गब्भवक्कंतियभुयपरिसप्पथलयरपंचेंदिय. तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? गोयमा ! दोहितो वि उववज्जति / [639-16 प्र.] (भगवन् !) यदि (वे) भुजपरिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या (वे) सम्भूच्छिम-भुजपरिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं अथवा गर्भज-भुजपरिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं ? [639-16 उ.] गौतम ! (वे) दोनों से (सम्मूच्छिम-भुजपरिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से भी, तथा गर्भज-भुजपरिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से) भी उत्पन्न होते हैं। [17] जति सम्मुच्छिमभुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति कि पज्जत्तयसम्मुच्छिमभुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिहितो उववज्जंति ? अपज्जत्तय सम्मुच्छिमभुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? गोयमा ! पज्जत्तएहितो उववज्जंति, नो अपज्जत्तएहितो उववज्जति / [636-17 प्र.] (भगवन् ! ) यदि सम्मूच्छिम-भुजपरिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो क्या (वे) पर्याप्तक-सम्मूच्छिम-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, अथवा अपर्याप्तक-सम्मूच्छिम-भुजपरिसर्प-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं ? [639-17 उ.] गौतम ! (वे) पर्याप्तक-सम्मूच्छिम-भुजपरिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, (किन्तु) अपर्याप्तक-सम्मूच्छिम-भुजपरिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न नहीं होते। [18] जति गम्भवक्कंतियभुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिषखजोणिएहितो उववज्जति किं पज्जत्तएहिंतो उववज्जति ? अपज्जत्तएहितो उववज्जंति ? गोयमा ! पज्जत्तएहिंतो उववज्जंति, नो अपज्जत्तएहितो उववति / [639.18 प्र.] (भगवन् ! ) यदि गर्भज-भुजपरिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं तो क्या (वे नारक) पर्याप्तक-गर्भज-भुजपरिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उप्पन्न होते हैं, या अपर्याप्त-गर्भज-भुजपरिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? [636-18 उ.] गौतम ! पर्याप्तक-गर्भज-भुजपरिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, (किन्तु) अपर्याप्तक-गर्भज-भुजपरिसर्प-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न नहीं होते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org