________________ 462 [ प्रज्ञापनासूत्र [636.6 उ.] गौतम ! (वे) पर्याप्तक-सम्मूच्छिम-चतुष्पद-स्थलचर-तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों से उत्पन्न होते हैं, किन्तु अपर्याप्तक-सम्मूच्छिम-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से नहीं उत्पन्न होते। [10] जति गम्भवतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववजंति कि संखेज्जवासाउगगब्भवक्कंतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? असंखेज्जवासा. उयगम्भवतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिनहितो उववज्जंति ? गोयमा ! संखेज्जवासाउएहितो उववज्जंति, नो असंखेज्जवासाउएहितों उववज्जंति / [639-10 प्र.] (भगवन् )! यदि गर्भज-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से (नारक) उत्पन्न होते हैं, तो क्या (वे) संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, अथवा असंख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? / [639-10 उ.] गौतम ! (वे) संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, (किन्तु) असंख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज-चतुष्पद-स्थलचरपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से नहीं उत्पन्न होते। [11] जति संखेज्जवासाउयगम्भवतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति कि पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयगन्भवतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? अपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयगम्भवक्कंतियच उप्पयथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? गोयमा ! पज्जत्तएहितो उववज्जति, नो अपज्जत्तयसंखेज्जवासाउएहितो उववज्जति / [639-11 प्र.] (भगवन् ! ) यदि (वे नारक) संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज-चतुष्पदस्थलचर-पचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क गर्भज चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, (अथवा) अपर्याप्तक-संख्यात-वर्षायुष्क गर्भज-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? [639-11 उ.] गौतम ! (वे) पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-गर्भज-चतुष्पद-स्थलचर-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, (किन्तु) अपर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-गर्भज-चतुष्पद-स्थलचरपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से नहीं उत्पन्न होते / [12] जति परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति कि उरपरिसप्पथलयर. पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? भुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववउति? गोयमा! दोहितो वि उववज्जंति / [639-12 प्र.] भगवन् ! यदि (वे) परिसर्प-स्थलचर पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org