________________ छठा व्युत्क्रान्तिपद] [459 एक समय में वनस्पतिकाय से मर कर वनस्पतिकाय में ही उत्पन्न होने वाले जीव अनन्त होते हैं एवं अन्य कायों से मर कर वनस्पतिकाय में उत्पन्न होने वाले असंख्यात हैं।' गर्भज मनुष्य तथा आनतादि का एक समय में संख्यात ही उत्पाद क्यों ? अानतादि देवलोकों में मनुष्य उत्पन्न होते हैं, जो कि संख्यात ही हैं। तिर्यंच उनमें नहीं उत्पन्न होते। पंचम कुतोद्वार : चातुर्गतिक जीवों की पूर्वभवों से उत्पत्ति (प्रागति) को प्ररूपरणा 636. [1] नेरइया णं भंते ! कतोहितो उववज्जति ? कि नेरइएहितो उववज्जति ? तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? मणुस्से हितो उववज्जति ? देवेहितो उववज्जति ? गोयमा ! नेरइया नो नेरइएहितो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिहितो उबवज्जंति, मणुस्सेहितो उववज्जंति, नों देवेहितो उववज्जंति / [636-1 प्र.] भगवन् ! नैरयिक कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? क्या (वे) नैरयिकों में से उत्पन्न होते हैं ? तिर्यग्योनिकों में से उत्पन्न होते हैं ? मनुष्यों में से उत्पन्न होते हैं ? (अथवा) देवों में से उत्पन्न होते हैं ? [639-1 उ.] गौतम ! नैरयिक, नैरयिकों में से उत्पन्न नहीं होते, (वे) तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, (तथा) मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, (किन्तु) देवों में से उत्पन्न नहीं होते। [2] जदि तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति कि एगिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? बेइंदियतिरिक्खजोणिएहितो उबवज्जति ? तेइंदियतिरिक्खजोगिएहितो उक्वज्जति ? चरिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? पंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? गोयमा ! नो एगिदिय० तो बेदिय० नो तेइंदिय० नो चरिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जंति, पंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति / [639-2 प्र.] भगवन् ! यदि (नैरयिक) तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो क्या (वे) एकेन्द्रियतियंञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, द्वीन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, त्रीन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, चतुरिन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, अथवा पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? / [639-2 उ.] गौतम ! (वे) न तो एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों से, न द्वीन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से, न ही त्रीन्द्रियतिर्यञ्चयोतिकों से और न चतुरिन्द्रिय तिर्यग्योनिकों से उत्पन्न होते हैं, किन्तु पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं। [3] जति पंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति कि जलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? थलयरपंचेंदितिरिक्खजोणिएहितों उववज्जति ? खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? 1. (क) प्रज्ञापनासूत्र म. वृत्ति, पत्रांक 208, 206, (ख) प्रज्ञापना. प्र. बो. टीका भा. 2, पृ 992 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org