Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 452] [प्रज्ञापनासूत्र [602 उ.] गौतम ! (वे) जघन्य एक समय तक तथा उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष तक (उपपातविरहित कहे हैं। 603. उवरिममेवेज्जगदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं संखिज्जाई वाससतसहस्साई। [603 प्र.] भगवन् ! ऊपरी वेयक देवों का उपपातविरह कितने काल तक का कहा गया है ? [603 उ.] गौतम ! (उनका उपपात-विरहकाल) जघन्यतः एक समय का तथा उत्कृष्टतः संख्यातलाख वर्ष का है। 604. विजय-वेजयंत-जयंताऽपराजियदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं / [604 प्र.] भगवन् ! विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवों का उपपातविरह कितने काल तक का कहा है ? [604 उ.] गौतम ! (इनका उपपात-विरहकाल) जघन्य एक समय का तथा उत्कृष्ट असंख्यातकाल का है। 605. सव्वदसिद्धगदेवा णं भंते ! केवतियं कालं विरहिता उववाएणं पन्नत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं एग समयं, उक्कोसेणं पलिप्रोवमस्स संखेज्जइभागं / [605 प्र.] भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध देवों का उपपातविरह कितने काल तक का कहा गया है ? [605 उ.] गौतम ! जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट पल्योपम का संख्यातवां भाग है। 606. सिद्धा णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया सिझणयाए पण्णता? गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा / [606 प्र.] भगवन् ! सिद्ध जीवों का उपपात-विरह कितने काल तक का कहा गया है ? [606 उ.] गौतम ! उनका उपपात-विरहकाल जघन्य एक समय का तथा उत्कृष्ट छह मास का है। 607. रयणप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उन्वट्टणाए पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता? [607 प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभा के नैरयिक कितने काल तक उद्वर्त्तना से विरहित कहे गए हैं ? ___ [607 उ.] गौतम ! (वे) जघन्य एक समय तक तथा उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त तक उद्वर्तना से विरहित कहे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org