Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ 426 ] [ प्रज्ञापनासूत्र [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्यगुण काले परमाणुपुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं ? [उ.] गौतम ! एक जघन्यगुण काला परमाणुपुद्गल, दूसरे जघन्यगुण काले परमाणुपुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की दृष्टि से तुल्य है, स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, कृष्णवर्ण के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है, शेष वर्ण नहीं होते तथा गन्ध, रस और दो स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है / [2] एवं उक्कोसगुणकालए वि / [538-2] इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले (परमाणुपुद्गलों की पर्याय-प्ररूपणा समझनी चाहिए।) [3] एवमजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि / णवरं सट्ठाणे छठाणवडिते / [538-3] इसी प्रकार मध्यमगुण काले परमाणुपुद्गलों की भी पर्याय-प्ररूपणा समझ लेनी चाहिए / विशेष यह है कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित है / 536. [1] जहण्णगुणकालयाणं भंते ! दुपएसियाणं पुच्छा। गोयमा ! अणंता। से केणठेणं? गोयमा ! जहण्णगुणकालए दुपएसिए जहण्णगुणकालगस्स दुपएसियस्स दब्बठ्ठयाए तुल्ले, पएसठ्ठयाए तुल्ले; प्रोगाहणठ्ठयाए सिय होणे सिय तुल्ले सिय प्रभतिते-जति होणे पदेसहोणे, अह अम्भतिए पएसमन्भतिए; ठितीए चउट्ठाणवडिते, कालवण्णपज्जवेहि तुल्ले, प्रवसेसवण्णादि-उरिल्लचउफासेहि य छठाणवडिते। [539-1 प्र.भगवन् ! जघन्यगुण काले द्विप्रदेशिक स्कन्धों के पर्याय कितने कहे गए हैं ? [539-1 उ.] गौतम ! (उनके) अनन्त पर्याय हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्यगुण काले (द्विप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं ?) [उ.] गौतम ! एक जघन्यगुण काला द्विप्रदेशो स्कन्ध, दूसरे जघन्यगुण काले द्विप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है; अवगाहना की अपेक्षा से कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक है / यदि हीन हो तो एकप्रदेश हीन होता है, यदि अधिक हो तो एकप्रदेश अधिक होता है। स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित होता है, कृष्णवर्ण के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है और शेष वर्णादि तथा उपर्युक्त चार स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। [2] एवं उक्कोसगुणकालए वि। [539-2| इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले (परमाणुपुद्गलों की पर्याय-प्ररूपणा समझनी चाहिए / ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org