________________ [प्रज्ञापनासूत्र [545-2] इसी प्रकार उत्कृष्टगुणकर्कश (अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों के विषय में समझना चाहिए।) [3] अजहण्णमणुक्कोसगुणकक्खडे वि एवं चेव / नवरं सट्ठाणे छट्ठाणडिते / [545-3] मध्यमगुणकर्कश (अनन्तप्रदेशी स्कन्धों का पर्यायविषयक कथन भी) इसी प्रकार (करना चाहिए / ) विशेष यह है कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित है। 546. एवं मउय-गरुय-लहुए वि भाणितब्वे / [546] मृदु, गुरु (भारी) और लघु (हलके) स्पर्श वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के पर्यायविषय में भी इसी प्रकार कथन करना चाहिए। 547. [1] जहण्णगुणसीयाणं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं पुच्छा। गोयमा ! अणंता। से केणठेणं? गोयमा! जहण्णगुणसीते परमाणुपोग्गले जहण्णगुणसीतस्स परमाणुपोग्गलस्स दव्वयाए तुल्ले, पदेसट्ठयाए तुल्ले, प्रोगाहणट्ठयाए तुल्ले, ठितीए च उट्ठाणडिते, वण्ण-गंध-रसेहि छहाणवडिते, सोतफासपज्जवेहि य तुल्ले, उसिण फासो न भणति, णिद्ध-लुक्खफासपज्जवेहि छठाणवडिते / [547-1 प्र.] भगवन् ! जघन्यगुणशीत परमाणुपुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [548-1 उ.] गौतम ! (उनके) अनन्त पर्याय (कहे हैं।) . [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्यगुणशीत परमाणुपुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं ? [उ.] गौतम ! एक जघन्यगुणशीत परमाणुपुद्गल, दूसरे जघन्यगुणशीत परमाणुपुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना को दष्टि से तुल्य है, स्थिति की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है तथा वर्ण, गन्ध और रसों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, शीतस्पर्श के पर्यायों से तुल्य है। इसमें उष्णस्पर्श का कथन नहीं करना चाहिए। स्निग्ध और रूक्षस्पर्शो के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। [2] एवं उक्कोगुणसोते बि। [547-2] इसी प्रकार उत्कृष्टगुणशीत (परमाणुपुद्गलों) के पर्यायों के विषय में कहना चाहिए। [3] अजहण्णमणुक्कोसगुणसीते वि एवं चेव / नवरं सट्ठाणे छट्ठाणवडिते। [547-3] मध्यमगुण शीत (परमाणुपुद्गलों) के (पर्यायों के सम्बन्ध में भी) इसी प्रकार (कहना चाहिए / ) विशेष यह है कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित (हीनाधिक) है / 548. [1] जहण्णगुणसीयाणं दुपएसियाणं पुच्छा। गोयमा! अणंता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org