________________ पांचवाँ विशेषपद (पर्यायपद)] [437 [3] अजहण्णमणुक्कोसोगाहणगाणं भंते ! पोग्गलाणं पुच्छा। गोयमा ! प्रणंता। से केणठेणं? गोयमा ! अजहण्णमणक्कोसोगाहणए पोग्गले अजहण्णमणुक्कोसोगाहणगस्स पोग्गलस्स दध्वट्ठयाए तल्ले, पदेसठ्ठयाए छट्ठाणवडिते, प्रोगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए चउठाणवडिते, वण्णादि-अट्ठफासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते / [555-3 प्र. भगवन् ! मध्यम अवगाहना वाले पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [555-3 उ.] गौतम ! (उनके) अनन्त पर्याय (कहे हैं)। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है (कि मध्यम अवगाहना वाले पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं) ? [उ.] गौतम ! एक मध्यम अवगाहना वाला पुद्गल, दूसरे मध्यम अवगाहना वाले पुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है। प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है; अवगाहना की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है; स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है और वर्णादि तथा अष्ट स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। 556. [1] जहण्णद्वितीयाणं भंते ! पोग्गलाणं पुच्छा / गोयमा ! अणंता। से केणठे ? गोयमा ! जहण्णठितीए पोग्गले जहण्णठितीयस्स पोग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसठ्ठयाए छट्ठाणवडिते, प्रोगाहणठ्याए चउट्ठाणडिते, ठितीए तुल्ले, वण्णादि-अट्ठफासपज्जवेहि य छट्ठाणवड़िते। [556-1 प्र.] भगवन् ! जघन्य स्थिति वाले पुद्गलों के कितने पर्याय कहे हैं ? [556-1 उ.] गौतम ! (उनके) अनन्त पर्याय कहे हैं / प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्य स्थिति वाले पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं ? [उ.] गौतम ! एक जघन्य स्थिति वाला पुद्गल, दूसरे जघन्य स्थिति वाले पुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है। प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है; अवगाहना की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है; स्थिति की अपेक्षा से तुल्य है, और वर्णादि तथा अष्ट स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। [2] एवं उक्कोसठितीए वि। [556-2] इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले (पुद्गलों के पर्यायों के विषय में भी कहना चाहिए।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org