Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ छट्ठ वक्कंतिपयं छठा व्युत्क्रान्तिपद व्युत्क्रान्तिपद के पाठ द्वार 556. बारस 1, चउवीसाइं 2, सअंतरं 3, एगसमय 4, कत्तो य 5 / उन्वट्टण 6, परभवियाउयं 7, च अठेव आगरिसा 8 // 182 // [556 गाथार्थ--] 1. द्वादश (बारह), 2. चतुर्विशति (चौबीस), 3. सान्तर (अन्तरसहित), 4. एक समय, 5. कहाँ से ? 6. उद्वर्तना, 7. परभव-सम्बन्धी आयुष्य और 8. पाकर्ष, ये आठ द्वार (इस व्युत्क्रान्तिपद में) हैं। विवेचन-व्युत्क्रान्तिपद के पाठ द्वार-प्रस्तुत सूत्र में एक संग्रहणीगाथा के द्वारा व्युत्क्रान्तिपद के 8 द्वारों का उल्लेख किया गया है। प्रथम द्वादशद्वार : नरकादि गतियों में उपपात और उद्वर्तना का विरहकाल-निरूपण-- 560. निरयगती णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णता? गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता / [560 प्र.] भगवन् ! नरकगति कितने काल तक उपपात से विरहित कही गई है ? [560 उ.] गौतम ! (वह) जघन्य (कम से कम) एक समय तक और उत्कृष्ट (अधिक से अधिक) बारह मुहूर्त तक (उपपात से विरहित रहती है / ) 561. तिरियगती णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं एगं समय, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। [561 प्र.] भगवन् ! तिर्यञ्चगति कितने काल तक उपपात से विरहित कही गई है ? [561 उ.] गौतम ! जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक (उपपात से विरहित रहती है।) 562. मणुयगती णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णता? गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। [562 प्र.} भगवन् ! मनुष्यगति कितने काल तक उपपात से विरहित कही गई है ? [562 उ.] गौतम ! जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक (उपपात से विरहित रहती है। 1. प्रज्ञापनासूत्र म. वृत्ति, पत्रांक 205 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org