________________ 448 ] [ प्रज्ञापनासूत्र 576. पुढविकाइया णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णता ? गोयमा ! अणुसमयमविरहियं उववाएणं पण्णता / [579 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकजीव कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं ? [579 उ.] गौतम ! (वे) प्रप्तिसमय उपपात से अविरहित कहे गए हैं / अर्थात् उनका उपपात निरन्तर होता ही रहता है / 580. एवं प्राउकाइयाण वि तेउकाइयाण वि वाउकाइयाण वि वणप्फइकाइयाण वि अणुसमयं अविरहिया उववाएणं पण्णत्ता / [580 प्र.] इसी प्रकार अप्कायिक भी तेजस्कायिक भी, वायुकायिक भी, एवं वनस्पतिकायिक जीव भी प्रतिसमय उपपात से अविरहित कहे गए हैं। 581. बेइंदिया णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णता? गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं / [581 प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों का उपपातविरह कितने काल तक का कहा गया है ? [581 उ.] गौतम ! जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक (उनका उपपातविरहकाल रहता है।) 582. एवं तेइंदिय-चरिंदिया। [582] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय एवं चतुरिन्द्रिय के उपपातविरहकाल के विषय में समझ लेना चाहिए।) 583. सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णता? गोयमा ! जहणेणं एग समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं / [583 प्र.] भगवन् ! सम्मूच्छिम पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं ? [583 उ.] गौतम ! (उनका उपपातविरह) जघन्य एक समय तक का और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक का है। 584. गम्भवक्कतियपंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! केवतियं कालं विरहिता उववाएण पण्णता? गोयमा ! जहण्णणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। [584 प्र.] भगवन् ! गर्भजपंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं ? [584 उ.] गौतम ! (वे) जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक (उपपात से विरहित रहते हैं।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org