________________ 446 ] / সাধনার द्वितीय चतुर्विशतिद्वार : नैरयिकों से अनुत्तरौपपातिकों तक के उपपात और उद्वर्तना के विरहकाल को प्ररूपरणा 566. रयणप्पभापुढविनेरइया गं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पग्णता ? गोयमा ! जहणणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउन्बोसं मुहुता। [569 प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभा-पृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए 5] भगवन् ! रत्नप्रभा-पृथ्वी के के [569 उ.] गौतम ! (उनका उपपातविरहकाल) जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त तक का (कहा गया है।) 570. सक्करप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णता? गोयमा ! जहण्णणं एगं समर्थ, उक्कोसेणं सत्त रातिदियाणि / [570 प्र.] भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी के नारक कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं ? [570 उ.] गौतम ! (वे) जघन्य एक समय तक और उत्कृष्टतः सात रात्रि-दिन तक (उपपात से विरहित रहते हैं।) 571. वालुयप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं एग समयं, उक्कोसेणं अद्धमासं / [571 प्र.] भगवन् ! वालुकाप्रभापृथ्वी के नारक कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं ? [571 उ.] गौतम ! (वे) जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट अर्द्धमास तक (उपपात से विरहित रहते हैं / ) 572. पंकप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! केतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णता ? गोयमा ! जहण्णणं एग समयं, उक्कोसेणं मासं / / [572 प्र.] भगवन् ! पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं ? [572 उ.] गौतम ! (वे) जघन्यतः एक समय तक और उत्कृष्टतः एक मास तक (उपपातविरहित रहते हैं। 573. धूमप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! केवतियं कालं विरहिता उववाएणं पण्णता? गोयमा ! जहणेणं एगं सययं, उक्कोसेणं दो मासा / __ [573 प्र.] भगवन् ! धूमप्रभापृथ्वी के नारक कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org