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The sixth chapter of the Vyutkrantipad, the Vyutkrantipad, has eight gates: 1. Twelve (Barah), 2. Twenty-four (Chaubis), 3. With interval (Santara), 4. One time (Eksamya), 5. From where? (Kattoy), 6. Udvartana, 7. Life related to the future (Parabhaviyaum), and 8. Attraction (Agaresha).
This chapter discusses the eight gates of the Vyutkrantipad. The first gate, the twelve gate, describes the duration of the absence of Uppaat and Udvartana in the hellish realms.
**Question:** O Bhagavan! For how long is the hellish realm considered to be devoid of Uppaat?
**Answer:** Gautama! The minimum duration is one time (Eksamya) and the maximum duration is twelve Muhurta.
**Question:** O Bhagavan! For how long is the animal realm considered to be devoid of Uppaat?
**Answer:** Gautama! The minimum duration is one time (Eksamya) and the maximum duration is twelve Muhurta.
**Question:** O Bhagavan! For how long is the human realm considered to be devoid of Uppaat?
**Answer:** Gautama! The minimum duration is one time (Eksamya) and the maximum duration is twelve Muhurta.
________________ छट्ठ वक्कंतिपयं छठा व्युत्क्रान्तिपद व्युत्क्रान्तिपद के पाठ द्वार 556. बारस 1, चउवीसाइं 2, सअंतरं 3, एगसमय 4, कत्तो य 5 / उन्वट्टण 6, परभवियाउयं 7, च अठेव आगरिसा 8 // 182 // [556 गाथार्थ--] 1. द्वादश (बारह), 2. चतुर्विशति (चौबीस), 3. सान्तर (अन्तरसहित), 4. एक समय, 5. कहाँ से ? 6. उद्वर्तना, 7. परभव-सम्बन्धी आयुष्य और 8. पाकर्ष, ये आठ द्वार (इस व्युत्क्रान्तिपद में) हैं। विवेचन-व्युत्क्रान्तिपद के पाठ द्वार-प्रस्तुत सूत्र में एक संग्रहणीगाथा के द्वारा व्युत्क्रान्तिपद के 8 द्वारों का उल्लेख किया गया है। प्रथम द्वादशद्वार : नरकादि गतियों में उपपात और उद्वर्तना का विरहकाल-निरूपण-- 560. निरयगती णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णता? गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता / [560 प्र.] भगवन् ! नरकगति कितने काल तक उपपात से विरहित कही गई है ? [560 उ.] गौतम ! (वह) जघन्य (कम से कम) एक समय तक और उत्कृष्ट (अधिक से अधिक) बारह मुहूर्त तक (उपपात से विरहित रहती है / ) 561. तिरियगती णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं एगं समय, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। [561 प्र.] भगवन् ! तिर्यञ्चगति कितने काल तक उपपात से विरहित कही गई है ? [561 उ.] गौतम ! जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक (उपपात से विरहित रहती है।) 562. मणुयगती णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णता? गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। [562 प्र.} भगवन् ! मनुष्यगति कितने काल तक उपपात से विरहित कही गई है ? [562 उ.] गौतम ! जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक (उपपात से विरहित रहती है। 1. प्रज्ञापनासूत्र म. वृत्ति, पत्रांक 205 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org