________________ 428] [प्रज्ञापनासूत्र याए तुल्ले, पएसठ्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए चउट्ठाणवड़िते, प्रोगाहणठ्याए चउठाणवडिए, कालवण्णपज्जवेहि तुल्ले, प्रवसेसेहि वण्णादि-उरिल्लचउफासेहि य छट्ठाणवड़िते। [542-1 प्र.] भगवन् ! जघन्यगुण काले असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [542-1 उ.] गौतम ! (उनके) अनन्त पर्याय हैं / [प्र.] भगवन् ! किस कारणं से ऐसा कहते हैं कि (जघन्यगुण काले असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं ?) [उ.] गौतम ! एक जघन्यगुण काला असंख्यातप्रदेशी पुद्गलस्कन्ध, दूसरे जघन्यगुण काले असंख्यातप्रदेशी पुद्गलस्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है, स्थिति की दृष्टि से चतुःस्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है तथा कृष्णवर्ण के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है और शेष वर्ण आदि तथा ऊपर के चार स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। [2] एवं उक्कोसगुणकालए वि / [542-2] इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले (असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों का पर्याय-विषयक कथन करना चाहिए / ) [3] अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव / णवरं सट्ठाणे छट्ठाणवड़िते / [542-3] इसी प्रकार मध्यमगुण काले (असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों के विषय में भी कहना चाहिए / ) विशेष इतना है कि वह स्वस्थान में षट्स्थानपतित है / 543. [1] जहण्णगुणकालयाणं भंते ! अणंतपएसियाणं पुच्छा / गोयमा ! अणंता। से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! जहणगुणकालए अणंतपएसिए जहष्णगुणकालयस्स अणंतपएसियस्स दस्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्टयाए छट्ठाणवडिते, प्रोगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए चउट्ठाणवडिते, कालवण्णपज्जवेहि तुल्ले, प्रवसेसेहिं वण्णादि-अट्ठफासेहि य छट्ठाणवडिते। [543-1 प्र.] भगवन् ! जघन्यगुणकाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [543-1 उ.] गौतम ! (उनके) अनन्त पर्याय (कहे हैं।) [प्र.] भगवन् ! किस हेतु से आप ऐसा कहते हैं कि जघन्यगुण काले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं ? [उ.] गौतम ! एक जघन्यगुण काला अनन्तप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्यगुण काले अनन्तप्रदेशी स्कन्धं से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों को अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, कृष्णवर्ण के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है तथा अवशिष्ट वर्ण आदि एवं अष्टस्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org