Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [प्रज्ञापनासूत्र |550-1 प्र.] भगवन् ! जघन्यगुणशीत संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [550-1 उ.] गौतम ! (उनके) अनन्त पर्याय (कहे हैं / ) [प्र.] भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि जघन्यगुणशीत संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं ? [उ.] गौतम ! जघन्यगुणशीत संख्यातप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्यगुणशीत संख्यातप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से द्विस्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से द्विस्थानपतित है; स्थिति की दृष्टि से चतुःस्थानपतित है, वर्णादि की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है तथा शीतस्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है और उष्ण, स्निग्ध एवं रुक्ष स्पर्श की दृष्टि से षट्स्थानपतित है। [2] एवं उक्कोसगुणसीए वि। [550-2] इसी प्रकार उत्कृष्टगुण शीत(संख्यातप्रदेशी स्कन्धों की भी पर्यायसम्बन्धी प्ररूपणा समझनी चाहिए।) [3] अजहण्णमणुक्कोसगुणसीए वि एवं चेव / नवरं सट्टाणे छट्ठाणवडिए / __ [550-3] अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) गुण शीत संख्यातप्रदेशी स्कन्धों का पर्याय सम्बन्धी कथन भी ऐसा ही समझना चाहिए / विशेष यह कि वह स्वस्थान में षट्स्थानपतित है। 551. [1] जहष्णगुणसीताणं असंखेज्जपएसियाणं पुच्छा। गोयमा! अणंता। से केणढेणं? गोयमा ! जहण्णगुणसोते असंखेज्जपएसिए जहण्णगुणसीयस्स प्रसंखेज्जपएसियस्स दवट्टयाए तुल्ले, पएसट्टयाए चउढाणवडिते, प्रोगाहणट्टयाए चउढाणवडिते, ठितीए चउट्ठाणवाडिते, वण्णादिपज्जवेहि छट्ठाणवडित, सीतफासपज्जवेहिं तुल्ले, उसिण-निद्ध-लुक्खफासपज्जवेहि छट्ठाणवड़िते / [551-1 प्र.] भगवन् ! जघन्यगुणशीत असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे [551-1 उ.] गौतम ! उनके अनन्त पर्याय (कहे हैं / ) [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्यगुणशीत असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं ? [उ.] गौतम ! एक जघन्यगुणशीत असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्यगुणशीत असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है, अवगाहना की दृष्टि से चतु:स्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, वर्णादि के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, शीतस्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है और उष्ण, स्निग्ध एवं रूक्ष स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org