Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ पांचवां विशेषपद (पर्यायपद) ] [ 425 - मध्यमावगाहनाशील चतुःप्रदेशी से लेकर दशप्रदेशी स्कन्ध तक उत्तरोत्तर एक-एकप्रदेशवृद्धि-हानि-मध्यम अवगाहना वाले चतुःप्रदेशी स्कन्ध से लेकर दशप्रदेशी स्कन्ध तक उत्तरोत्तर एक-एक प्रदेश की वृद्धि-हानि होती है। तदनुसार चतुःप्रदेशी स्कन्ध में एक, पंचप्रदेशी स्कन्ध में दो, षट्प्रदेशी स्कन्ध में तीन, सप्तप्रदेशी स्कन्ध में चार, अष्टप्रदेशी स्कन्ध में पांच, नवप्रदेशी स्कन्ध में छह और दशप्रदेशी स्कन्ध में सात प्रदेशों की वृद्धि-हानि होती है / ___ जघन्य अवगाहना वाला संख्यातप्रदेशी स्कन्ध प्रदेशों से द्विस्थानपतित-जघन्य अवगाहना वाला संख्यातप्रदेशी एक स्कन्ध, दूसरे जघन्य अवगाहना वाले संख्यातप्रदेशी स्कन्ध से संख्यातभाग प्रदेशहीन या संख्यातगुण प्रदेशहीन होता है, यदि अधिक हो तो संख्यातभागप्रदेशाधिक अथवा संख्यातगुणप्रदेशाधिक होता है। इसीलिए इसे प्रदेशों की दृष्टि से द्विस्थानपतित कहा गया है / मध्यम अवगाहना वाला संख्यातप्रदेशी स्कन्ध स्वस्थान में द्विस्थानपतित-एक मध्यम अवगाहना वाला संख्यातप्रदेशी स्कन्ध दूसरे मध्यम अवगाहना वाले संख्यातप्रदेशी स्कन्ध से अवगाहना की दृष्टि से संख्यातभाग हीन या संख्यातगुण हीन होता है, अथवा संख्यातभाग अधिक या संख्यातगुण अधिक होता है। मध्यम अवगाहना वाले प्रसंख्यातप्रदेशी स्कन्ध की पर्याय-प्ररूपणा-इसकी पर्याय-प्ररूपणा जघन्य अवगाहना वाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध की पर्याय-प्ररूपणा के समान ही है। मध्यम अवगाहना वाले अर्थात्-आकाश के दो से लेकर असंख्यात प्रदेशों में स्थित पुद्गलस्कन्ध की पर्यायप्ररूपणा इसी प्रकार है, किन्तु विशेष बात यह है कि स्वस्थान में चतुःस्थानपतित है / मध्यम अवगाहना वाले अनन्तप्रवेशी स्कन्ध का अर्थ-आकाश के दो आदि प्रदेशों से लेकर असंख्यातप्रदेशों में रहे हुए मध्यम अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध कहलाते हैं।' जधन्यस्थितिक संख्यातप्रदेशी स्कन्ध प्रदेशों की दृष्टि से द्विस्थानपतित-यदि हीन हो तो संख्यातभाग हीन या संख्यातगुण हीन होता है, यदि अधिक हो तो संख्यातभाग अधिक या संख्यातगुण अधिक होता है / इसलिए यह द्विस्थानपतित है / जघन्यादियुक्त वर्णादियुक्त पुद्गलों की पर्याय-प्ररूपरणा 538. [1] जहण्णगुणकालयाणं परमाणुपोग्गलाणं पुच्छा। गोयमा ! अणंता। से केणठेणं? गोयमा ! जहण्णगुणकालए परमाणुपोग्गले जहण्णगुणकालगस्स परमाणुपोग्गलस्स दवठ्ठयाए तुल्ले, पदेसट्टयाए तल्ले, प्रोगाहणट्ठयाए तुल्ले, ठितीए चउठाणवडिते, कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले, अवसेसा वण्णा गस्थि, गंध-रस-फासपज्जवेहि य छठाणवडिते। [538. 1 प्र.] भगवन् ! जघन्यगुण काले परमाणुपुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [538-1 उ.] गौतम ! (उनके) अनन्त पर्याय (कहे हैं।) 1. (क) प्रज्ञापनासूत्र म. वृत्ति, पत्रांक 203, (ख) प्रज्ञापना. प्र. बो. टीका, पृ. 841 से 858 तक 2. (क) प्रज्ञापना. म. वृत्ति, पत्रांक 204, (ख) प्रज्ञापना प्र. बो. टीका, पृ. 859-860 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org