________________ पांचवां विशेषपद (पर्यायपद)] [ 423 [2] एवं उक्कोसठितीए वि / (535-2] इसी प्रकार उत्कष्ट स्थिति वाले संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों के विषय में कहना चाहिए। [3] प्रजहण्णमणुक्कोसट्टितीए वि एवं चेव / नवरं ठितीए चउठाणडिते। [535-3] मध्यम स्थिति वाले संख्यातप्रदेशी स्कन्धों का पर्यायविषयक कथन भी इसी प्रकार समझना चाहिए / विशेष यह है कि स्थिति की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है / 536. [1] जहण्णठितीयाणं असंखेज्जपएसियाणं पुच्छा। गोयमा ! अणंता। से केणट्रेणं? गोयमा ! जहण्णठितीए असंखेज्जपएसिए जहण्णठितीयस्स असंखेज्जपदेसियस्स दवट्टयाए तुल्ले, पदेसट्टयाते चउट्ठाणवडिते, प्रोगाहणट्टयाते चउट्ठाणवडिते, ठितीए तुल्ले, वण्णादि-उरिल्ल. चउप्फासेहि य छट्ठाणवड़िते। [536-1 प्र.] भगवन् ! जघन्य स्थिति वाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [536-1 उ.] गौतम ! उनके अनन्त पर्याय कहे हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्य स्थिति वाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं ? [उ.] गौतम ! एक जघन्य स्थिति बाला असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्य स्थिति वाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, अवगाहना की दृष्टि से चतु:स्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से तुल्य है, वर्णादि तथा उपर्युक्त चार स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। [2] एवं उक्कोसठिईए वि / [536-2] इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों के विषय में कहना चाहिए। [3] अजहण्णमणुक्कोसठितीए वि एवं चेव / नवरं ठितीए चउट्ठाणवडिते / [536-3] मध्यम स्थिति वाले असंख्यात प्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों के विषय में इसी प्रकार कहना चाहिए / विशेष यह है कि स्थिति की अपेक्षा चतु:स्थानपतित है / 537. [1] जहण्णठितीयाणं अणंतपदेसियाणं पुच्छा / गोयमा! अणंता। से केण?णं? गोयमा ! जहण्णठितीए अणंतपएसिए जहण्णठितीयस्स अणंतपएसियस्स दवट्ठयाए तुल्ले, पदेसठ्ठयाए छट्ठाणडिते, प्रोगाहणट्ठयाए चउठाणबडिते, ठितीए तुरुले, वण्णादि-अट्ठफासेहि य छठाणवडिते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org