________________ 424 ] [प्रज्ञापनासून [537-1 प्र.] भगवन् ! जघन्य स्थिति वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [537-1 उ.] गौतम ! उनके अनन्त पर्याय कहे हैं / [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्य स्थिति वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं ? [उ.] गौतम ! एक जघन्य स्थिति वाला अनन्तप्रदेशी स्कन्ध दूसरे जघन्य स्थिति वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है, स्थिति की दृष्टि से तुल्य है और वर्णादि तथा अष्ट स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है।। [2] एवं उक्कोसठितीए वि / [537-2] इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के पर्यायों के विषय में समझना चाहिए। [3] अजहण्णमणुक्कोसठितीए वि एवं चेव / नवरं ठितीए चउट्ठाणवडिते। [537-3] अजघन्य-अनुत्कष्ट (मध्यम) स्थिति वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों का पर्यायविषयक कथन भी इसी प्रकार करना चाहिए। विशेषता यह है कि स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित होता है। विवेचन-जघन्यादिविशिष्ट अवगाहना एवं स्थिति वाले द्विप्रदेशी से अनन्तप्रदेशो स्कन्ध तक के पर्यायों को प्ररूपणा--प्रस्तुत तेरह सूत्रों (सू. 525 से 537 तक) में जघन्य, उत्कृष्ट और मध्यम अवगाहना एवं स्थिति वाले परमाणु पुद्गलों तथा द्विप्रदेशिक, त्रिप्रदेशिक, यावत् संख्यातप्रदेशी, असंख्यातप्रदेशी और अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों की प्ररूपणा की गई है। जघन्य अवगाहना वाले द्विप्रदेशी स्कन्ध चार स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित-जघन्य अवगाहना वाले द्विप्रदेशी स्कन्धों में शीत, उष्ण, रूक्ष और स्निग्ध, ये चार स्पर्श ही पाए जाते हैं, इनमें शेष कर्कश, कठोर, हलका (लघु) और भारी (गुरु), ये चार स्पर्श नहीं पाए जाते / इनमें षट्स्थानपतित हीनाधिकता पाई जाती है। द्विप्रदेशीस्कन्ध में मध्यम अवगाहना नहीं होती-दो परमाणुओं का पिण्ड द्विप्रदेशी स्कन्ध कहलाता है / उसकी अवगाहना या तो अाकाश के एक प्रदेश में होगी अथवा अधिक से अधिक दो आकाशप्रदेशों में होगी। एक प्रदेश में जो अवगाहना होती है, वह जघन्य अवगाहना है और दो प्रदेशों में जो अवगाहना है, वह उत्कष्ट है / इन दोनों के बीच की कोई अवगाहना नहीं होती। अतएव मध्यम अवगाहना का अभाव है। ___मध्यम अवगाहना वाले चतुःप्रदेशी स्कन्धों को होनाधिकता-चतुःप्रदेशी स्कन्ध की जघन्य अवगाहना एक प्रदेश में और उत्कृष्ट अवगाहना चार प्रदेशों में होती है। मध्यम अवगाहना दो प्रकार की है ---दो प्रदेशों में और तीन प्रदेशों में / अतएव मध्यम अवगाहना वाले एक चतुःप्रदेशी स्कन्ध से दूसर। चतुःप्रदेशी स्कन्ध यदि अवगाहना से हीन होगा तो एकप्रदेशहीन ही होगा और अधिक होगा तो एकप्रदेशाधिक ही होगा। इससे अधिक होनाधिकता उनमें नहीं हो सकती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org