Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ चतुर्थ स्थितिपद] [349 - [430-1 उ.] गौतम ! जघन्य छब्बीस सागरोपम की और उत्कृष्ट सत्ताईस सागरोपम [2] मज्झिममझिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / [431-2 प्र.] भगवन् ! मध्यम-मध्यम प्रैवेयक अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [431-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] मज्झिममज्झिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णेणं छन्वीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं सत्तावीसं सागरोवमाई अंतोमुत्तूणाई। [431-3 प्र.] भगवन् ! मध्यम-मध्यम ग्रैवेयक पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही है ? [431- 3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम छब्बीस सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त कम सत्ताईस सागरोपम की है। 432. [1] मज्झिमउवरिमगेवेज्जाणं देवाणं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णेणं सत्तावीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं अट्ठावीसं सागरोवमाई / [432-1 प्र.] भगवन् ! मध्यम-उपरितन (बीच के त्रिक में सबसे ऊपर वाले) ग्रेवेयक देवों की कितने काल की स्थिति कही गई है ? [432-1 उ.] गौतम ! जघन्य सत्ताईस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट अट्ठाईस सागरोपम की है। [2] मज्झिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा / गोंयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / [432-2 प्र.] भगवन् ! मध्यम-उपरितन ग्रैवेयक अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [432-2 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] मज्झिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा / गोयमा ! जहणणं सत्तावीसं सागरोबमाइं अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं अट्ठावीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई। [432-3 प्र.) भगवन् ! मध्यम-उपरितन ग्रैवेयक पर्याप्तक देवों की कितने काल की स्थिति कही है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org