Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [प्रज्ञापनासूत्र [487-1 उ.] गौतम ! (उनके) अनन्त पर्याय कहे गए हैं / [प्र.] भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि 'जघन्य अवधिज्ञानी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों के अनन्त पर्याय कहे हैं ?' [उ.] गौतम ! एक जघन्य अवधिज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक, दूसरे जघन्य अवधिज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से (भी) तुल्य है, (किन्तु) अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है; स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित है तथा वर्ण, गंध, रस और स्पर्श के पर्यायों और प्राभिनिबोधिकज्ञान तथा श्रुतज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। अवधिज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है / (इसमें) अज्ञान नहीं कहना चाहिए / चक्षुदर्शन-पर्यायों और अचक्षुदर्शन-पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है।। [2] एवं उक्कोसोहिणाणो वि / [487-2] इसी प्रकार उत्कृष्ट अवधिज्ञानी पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीवों का (पर्यायविषयक कथन करना चाहिए / ) [3] अजहण्णुक्कोसोहिणाणी वि एवं चेव / नवरं सट्टाणे छट्ठाणवड़िते / [487-3] मध्यम अवधिज्ञानी (पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों) की (भी पर्यायप्ररूपणा) इसी प्रकार करनी चाहिए / विशेष यह है कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित (हीनाधिक) है / 488. जहा प्राभिणिबोहियणाणी तहा मइअण्णाणी सुयअण्णाणी य / जहा प्रोहिणाणी तहा विभंगणाणी वि चक्खुदसणी प्रचक्खुदंसणी य जहा प्राभिणिबोहिणाणी। प्रोहिदसणी जहा प्रोहिणाणी / जस्थ णाणा तत्थ अण्णाणा णस्थि, जत्थ अण्णाणा तत्थ गाणा स्थि, जत्थ सणा तत्थ णाणा वि अण्णाणा वि अस्थि त्ति भाणितत्वं / 488] जिस प्रकार आभिनिबोधिकज्ञानी तिर्यंचपंचेन्द्रिय की पर्याय-सम्बन्धी वक्तव्यता है, उसी प्रकार मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी की है ; जैसी अवधिज्ञानी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चपर्याय-प्ररूपणा है, वैसी ही विभंगज्ञानी की है / चक्षुदर्शनी और अचक्षुदर्शनी की (पर्यायसम्बन्धी वक्तव्यता) आभिनिबोधिकज्ञानी की तरह है / अवधिदर्शनी की (पर्याय-वक्तव्यता) अवधिज्ञानी की तरह है। (विशेष बात यह है कि) जहां ज्ञान हैं, वहां अज्ञान नहीं हैं; जहां अज्ञान हैं, वहाँ ज्ञान नहीं हैं; जहाँ दर्शन हैं, वहाँ ज्ञान भी हो सकते हैं, प्रज्ञान भी हो सकते हैं, ऐसे कहना चाहिए / विवेचन---जघन्य-प्रवगाहनादि विशिष्ट पंचेन्द्रियतियंचों की विविध अपेक्षानों से पर्यायप्ररूपणा-प्रस्तुत आठ सूत्रों (सू. 581 से 588 तक) में जघन्य, उत्कृष्ट और मध्यम अवगाहना आदि वाले पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों की, द्रव्य, प्रदेश, अवगाहना, स्थिति, वर्णादि, ज्ञानाज्ञानदर्शनयुक्त आदि विभिन्न अपेक्षाओं से पर्यायों की प्ररूपणा की गई है। जघन्य अवगाहना वाले तिर्यंचपंचेन्द्रिय स्थिति की अपेक्षा त्रिस्थानपतित-जघन्य अवगाहना वाला तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय आयु सम्बन्धी कालमर्यादा (स्थिति) की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित होता है, चतु:स्थानपतित नहीं; क्योंकि जघन्य अवगाहना वाला पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च संख्यात वर्षों की आयु वाला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org