________________ 408] [प्रज्ञापनासूत्र से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति परमाणुपोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा ! परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलस्स दम्वट्ठयाते तुल्ले, पदेसठ्ठयाते तुल्ले, प्रोगाहणट्ठयाते तुल्ले; ठितीए सिय होणे सिय तुल्ले सिय अभहिते-जति होणे असंखेज्जतिभागहीणे वा संखेज्जतिभागहीणे वा संखेज्जतिगुणहीणे वा असंखेज्जतिगुणहीणे वा, अह अभतिए असंखेज्जतिभागअब्भहिए वा संखेज्जतिभागमभहिए वा संखेज्जगुणअन्भहिए वा असंखेगुणप्रबभहिते वा; कालवण्णपज्जवेहि सिय होणे सिय तुल्ले सिय अन्भहिए-जति होणे अणंतभागहीणे वा असंखेज्जतिभागहोणे का संखेज्जमागहोणे वा संखेज्जगुणहीणे वा असंखेज्जगुणहोणे वा अणंतगुणहोणे वा, अह अहिए अणंतभागमम्महिते वा असंखेज्जतिभागमभहिए वा संखेज्जभागमभहिते वा संखेज्जगुणमअहिए वा असंखेज्जगुणमन्भहिए वा अणंतगुणमब्भहिए वा; एवं प्रवसेसवण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहि छट्ठाणवडिते, फासा णं सोय-उसिण-निद्ध-लुखेहि छट्ठाणवडिते, से तेणट्ठणं गोयमा ! एवं वुच्चति परमाणुपोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता। [504 प्र.] भगवन् ! परमाणुपुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [504 उ.] गौतम ! परमाणुपुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे हैं / [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि परमाणुपुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं ? [उ.] गौतम ! एक परमाणुपुद्गल, दूसरे परमाणुपुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है; अवगाहना की दृष्टि से (भी) तुल्य है, (किन्तु) स्थिति की अपेक्षा से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है, कदाचित् अभ्यधिक है / यदि हीन है, तो असंख्यातभाग हीन है, संख्यातभाग 'हीन है अथवा संख्यातगुण हीन है, अथवा असंख्यातगुण हीन है; यदि अधिक है, तो असंख्यातभाग अधिक है, अथवा संख्यातभाग अधिक है, या संख्यातगुण अधिक है, अथवा असंख्यातगुण अधिक है / कृष्णवर्ग के पर्यायों की अपेक्षा से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है, और कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो अनन्तभाग हीन है, या असंख्यातभाग-हीन है अथवा संख्यातभाग हीन है; अथवा संख्यातगुण हीन है, असंख्यातगुण हीन है या अनन्तगुण-हीन है / यदि अधिक है तो अनन्तभाग अधिक है, असंख्यातभाग अधिक है, अथवा संख्यातभाग अधिक है। अथवा संख्यातगुण अधिक है, असंख्यातगुण अधिक है, या अनन्तगुण अधिक है। इसी प्रकार अवशिष्ट (काले वर्ण के सिवाय बाकी के) वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। स्पर्शों में शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है / हे गौतम ! इस हेतु से ऐसा कहा गया है कि परमाणु-पुद्गलों के अनन्त पर्याय प्ररूपित हैं / 505. दुपदेसियाणं पुच्छा। गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता / से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! दुपदेसिए दुपदेसियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसठ्ठयाए तुल्ले, प्रोगाहणट्टयाए सिय होणे सिय तुल्ले सिय अभहिते -- जति होणे पदेसहोणे, अह अब्भहिते पदेसमभहिते; ठितीए च उट्ठाणवडिते, वण्णादोहिं उरिल्लेहिं चढहिं फासेहि य छट्ठागडिते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org