________________ पांचवां विशेषपद (पर्यायपद)] [413 517. संखेज्जसमयठितीयाणं एवं चेव / नवरं ठितीए दुट्ठाणवडिते / [517] संख्यात समय की स्थिति वाले पुदगलों का पर्यायविषयक कथन भी इसी प्रकार समझना चाहिए / विशेष यह है कि वह स्थिति की अपेक्षा से द्विस्थानपतित है। 518. असंखेज्जसमयठितीयाणं एवं चेव / नवरं ठिईए चउट्ठाणवडिते / [518] असंख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गलों का पर्यायविषयक कथन भी इसी प्रकार है / विशेषता यह है कि वह स्थिति की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है। 516. एगगुणकालगाणं पुच्छा / गोयमा ! प्रणता पज्जवा / से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चति ? गोयमा ! एगगुणकालए पोग्गले' एगगुणकालगस्स पोग्गलस्स दव्वठ्ठयाए तुल्ले, पएसट्ठयाए छट्ठाणवडिते, प्रोगाहणट्ठयाए चउट्ठाणडिते, ठितीए चउट्ठाणवडिते, कालवण्णपज्जवेहि तुल्ले, अवसेसेहिं वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहि छट्ठाणवडिते, अहिं फासेहिं छठाणवडिते / [519 प्र.] भगवन् ! एकगुण काले पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [519 उ.] गौतम ! (उनके ) अनन्त पर्याय कहे हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि एक गुण काले पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं ? [उ.] गौतम ! एक गुण काला एक पुद्गल, दूसरे एक गुण काले पुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों को अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की दृष्टि से चतु:स्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है, कृष्णवर्ण के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है तथा अवशिष्ट (कृष्णवर्ण के अतिरिक्त अन्य) वर्णों, गन्धों, रसों और स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है एवं अष्ट स्पर्शों की अपेक्षा से (भी) षट्स्थानपतित है / 520. एवं जाव दसगुणकालए। [520] इसी प्रकार यावत् दश गुण काले (पुद्गलों) की (पर्याय सम्बन्धी वक्तव्यता समझनी चाहिए / ) 521. संखेज्जगुणकालए वि एवं चेव / नवरं सट्ठाणे दुट्ठाणवडिते। [521] संख्यातगुण काले (पुद्गलों) का (पर्याय विषयक कथन) भी इसी प्रकार (जानना चाहिए।) विशेषता यह है कि (वे) स्वस्थान में द्विस्थानपतित हैं / 1. ग्रन्थानम् 3000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org