________________ 420 ] [ प्रज्ञापनासूत्र [3] प्रजहण्णमणुक्कोसोगाहणए वि एवं चेव / नवरं सट्ठाणे चउट्ठाणवडिते। 6530-3] मध्यम अवगाहना वाले (असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों) का (पर्याय-विषयक कथन भी) इसी प्रकार समझना चाहिए / विशेष यह है कि (वह) स्वस्थान में चतुःस्थानपतित है। 531. [1] जहण्णोगाहणगाणं भंते ! अणंतपएसियाणं पुच्छा / गोयमा ! अणंता। से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ ? गोयमा ! जहण्णोगाहणए प्रणतपएसिए खंधे जहण्णोगाहणगस्स अणंतपएसियस्स खंधस्स दव्वट्ठयाए तल्ले, पदेसट्टयाए छट्ठाणवडिते, प्रोगाहणट्ठयाए तुल्ले, ठितोए चउट्ठाणवडिते, वण्णादिउरिल्लचउफासेहिं छट्ठाणवडिए / [531-1 प्र.] भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [531-1 उ.] गौतम ! (उनके) अनन्त पर्याय (कहे हैं।) [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्य अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं ? [उ.] गौतम ! एक जघन्य अवगाहना वाला अनन्तप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्य अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से घटस्थानपतित है. अवगाहना की दृष्टि से तुल्य है, स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, वर्णादि तथा उपर्युक्त चार स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। [2] उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव / नवरं ठितीए वि तुल्ले। 6531-2] उत्कृष्ट अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों का (पर्यायविषयक कथन) भी इसी प्रकार (समझना चाहिए / ) विशेष यह है कि स्थिति की अपेक्षा भी तुल्य है / [3] अजहण्णमणुक्कोसोगाहणगाणं भंते ! अणंतपएसियाणे पुच्छा। गोयमा ! प्रणंता। से केपट्टणं? गोयमा ! अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए अगंतपएसिए खंधे अजहण्णमणुक्कोसोगाहणगस्स अणंतपदेसियस्स खंधस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्टयाए छट्ठाणवडिते, प्रोगाहणठ्ठयाए चउट्ठाणवडिए, ठितीए चउट्ठाणवडिते, वण्णादि-अट्ठफासेहि छठाणवडिते / [531-3 प्र.] भगवन् ! मध्यम अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [535-3 उ.] गौतम ! (उनके) अनन्त पर्याय कहे हैं। [प्र] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि मध्यम अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के अनन्त पर्याय हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org