________________ पांचवां विशेषपद (पर्यायपद)] [419 _[529-1 प्र.] भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले संख्यातप्रदेशी पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [529-1 उ.] गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि 'जघन्य अवगाहना वाले संख्यातप्रदेशी पुद्गलों (स्कन्धों) के अनन्त पर्याय हैं ?' [उ.] गौतम ! एक जघन्य अवगाहना वाला संख्यातप्रदेशी स्कन्ध दूसरे जघन्य अवगाहना वाले संख्यातप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से द्विस्थानपतित है, अवगाहना की दृष्टि से तुल्य है, स्थिति की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है और वर्णादि चार स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित (हीनाधिक) है। [2] एवं उपकोसोगाहणए वि / [529-2] इसी प्रकार उत्कृष्ट अवगाहना वाले (संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों के विषय में भी कहना चाहिए / ) [3] अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए वि एवं चेव / णवरं सट्ठाणे दुट्ठाणवडिते। [529-3] अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) अवगाहना वाले संख्यातप्रदेशी स्कन्धों का पर्यायविषयक कथन भी ऐसा ही समझना चाहिए। विशेष यह है कि वह स्वस्थान में (अवगाहना की अपेक्षा से) द्विस्थानपतित है। 530. [1] जहण्णोगाहणगाणं भंते ! असंखेज्जपएसियाणं पुच्छा। गोंयमा ! अणंता! से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चति ? गोयमा ! जहण्णोगाहणए असंखेज्जपएसिए खंधे जहण्णोगाहणगस्स असंखेज्जपएसियस्स खंघस्स दव्वद्र्याए तुल्ले, पएसठ्ठयाते चउट्ठाणवडिते, प्रोगाहणठ्याते तुल्ले, ठितीए चउट्ठाणवडिते, वण्णादि-उवरिल्लफासेहि य छट्ठाणवडिते। [530-1 प्र.] भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले असंख्यात प्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? - [530-1 उ.] गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्य अवगाहना वाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं ? [उ.] गौतम ! एक जघन्य अवगाहना वाला असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्य अवगाहना वाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है और वर्णादि तथा उपर्युक्त चार स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। [2] एवं उक्कोसोगाहणए वि / [530-2] उत्कृष्ट अवगाहना वाले (असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय) के विषय में भी इसी प्रकार समझना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org