________________ 412] [ प्रज्ञापनासूत्र 514. असंखेज्जपएसोगाढाणं पुच्छा। गोयमा ! अणंता पउजवा / से केणद्वेणं भंते ! एवं उच्चति ? गोयमा ! असंखेज्जपएसोगाढे पोग्गले असंखेज्जपएसोगाढस्स पोग्गलस्स दवट्ठाए तल्ले, पदेसठ्ठयाए छट्ठाणवडिते, प्रोगाहणट्टयाए चउट्ठाणवउिते, ठितीए चउठाणवडिते, वण्णादि-अट्ठफासेहि छठाणवड़िते। [514 प्र.] भगवन् ! असंख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [514 उ.] गौतम ! (उनके) अनन्त पर्याय कहे हैं / [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि असंख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल के अनन्त पर्याय हैं ? [उ.[ गौतम ! एक असंख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल, दूसरे असंख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, वर्णादि तथा प्रष्ट स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। 515. एगसमयठितीयाणं पुच्छा। गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति ? गोयमा ! एगसमयठितीए पोम्गले एगसमयठितीयस्स पोग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्ठयाए छट्ठाणवडिते, ओगाहणठ्याए चउट्ठाणवडिते, ठितीए तुल्ले, धण्णादि-अहफासेहि छट्ठाणवड़िते। [515 प्र.] भगवन् ! एक समय की स्थिति वाले पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [515 उ.] गौतम ! (उनके) अनन्त पर्याय कहे हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि एक समय की स्थिति वाले पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं ? [उ.] गौतम ! एक समय की स्थिति वाला एक पुद्गल, दूसरे एक समय की स्थिति वाले पुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से तुल्य है, वर्णादि तथा अष्ट स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। 516. एवं जाव दससमयठिईए। [516] इस प्रकार यावत् दस समय की स्थिति वाले पुद्गलों की पर्यायसम्बन्धी वक्तव्यता समझनी चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org