Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ पांचवां विशेषपद (पर्यायपद) 1 [467 प्र.] भगवन् ! केवलज्ञानी मनुष्यों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [467 उ.] गौतम ! (उनके) अनन्त पर्याय कहे हैं / [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि 'केवलज्ञानी मनुष्यों के अनन्त पर्याय कहे हैं ?' [उ.] गौतम ! एक केवलज्ञानी मनुष्य, दूसरे केवलज्ञानी मनुष्य से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों को अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना की दृष्टि से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित है, तथा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, एवं केवलज्ञान के पर्यायों और केवलदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है। 468. एवं केवलदसणी वि मणसे भाणियन्वे / [468] (जैसे केवलज्ञानी मनुष्यों के पर्यायों के विषय में कहा गया,) वैसे ही केवलदर्शनी मनुष्यों के (पर्यायों के) विषय में कहना चाहिए। विवेचन--मनुष्यों के पर्यायों की विभिन्न अपेक्षाओं से प्ररूपणा--प्रस्तुत दस सूत्रों (सू. 489 से 498 तक) में जघन्य-उत्कृष्ट-मध्यम अवगाहना, स्थिति, वर्णादि तथा ज्ञान प्रादि वाले मनुष्य के पर्यायों की विविध अपेक्षाओं से प्ररूपणा की गई है। जघन्य-प्रवगाहनायुक्त मनुष्य स्थिति की दृष्टि से त्रिस्थानपतित-जधन्य अवगाहना वाला मनुष्य नियम से संख्यातवर्ष की आयु वाला ही होता है, इस दृष्टि से वह त्रिस्थानपतित हीनाधिक ही होता है, अर्थात् वह असंख्यात-संख्यातभाग एवं संख्यातगुण हीनाधिक ही होता है / जधन्य-प्रवगाहनायुक्त मनुष्यों में तीन ज्ञानों और दो अज्ञानों की प्ररूपणा-किसी तीर्थंकर का अथवा अनुत्तरौपपातिक देव का अप्रतिपाती अवधिज्ञान के साथ जघन्य अवगाहना में उत्पाद होता है, तब जघन्य अवगाहना में भी अवधिज्ञान पाया जाता है। अतएव यहां तीन ज्ञानों का कथन किया गया है, किन्तु नरक से निकले हुए जीव का जघन्य अवगाहना में उत्पाद नहीं होता, क्योंकि उसका स्वभाव ही ऐसा है। इसलिए जघन्य अवगाहना में विभंगज्ञान नहीं पाया जाता; इस कारण यहाँ (मूलपाठ में) दो अज्ञानों की ही प्ररूपणा की गई है। उत्कृष्ट अवगाहनावाले मनुष्य की स्थिति को दृष्टि से हीनाधिकतुल्यता-उत्कृष्ट अवगाहना वाले मनुष्यों की अवगाहना तीन गव्यूति (कोस) की होती है और उनकी स्थिति होती है---जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम तीन पल्योपम की और उत्कृष्ट पूरे तीन पल्योपम की। तीन पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग, तीन पल्योपमों का असंख्यातवाँ ही भाग है। अतएव पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग कम तीन पल्योपम वाला मनुष्य, तीन पल्योपम की स्थिति वाले मनुष्य से असंख्यात भागहीन होता है और पूर्ण तीन पल्योपम वाला मनुष्य उससे असंख्यातभाग अधिक स्थिति वाला होता है। इनमें अन्य किसी प्रकार की हीनता या अधिकता सम्भव नहीं है। इस प्रकार के किन्हीं दो मनुष्यों में कदाचित् स्थिति की तुल्यता भी होती है / उत्कृष्ट अवगाहना वाले मनुष्यों में दो ज्ञान और दो प्रज्ञान की प्ररूपणा-उत्कृष्ट अवगाहना वाले मनुष्यों में मति और श्रुत, ये दो ही ज्ञान अथवा मत्यज्ञान और श्रुताज्ञान, ये दो ही अज्ञान और दो ही दर्शन पाए जाते हैं। इसका कारण यह है कि उत्कृष्ट अवगाहना वाले मनुष्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org