Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ चतुर्य स्थितिपद] [351 [3] उवरिममज्झिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं एगणतोसं सागरोवमाई अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमाई अंतोमुत्तूणाई। [434-3 प्र.] भगवन् ! उपरितन-मध्यम ग्रैवेयक पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [434-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम उनतीस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त कम तीस सागरोपम को है। 435. [1] उपरिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं तीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं एक्कतीसं सागरोवमाई। [435-1 प्र.] भगवन् ! उपरितन-उपरितन (ऊपर के त्रिक के सबसे ऊपर वाले) ग्रंवेयकदेवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है? [435-1 उ.] गौतम ! जघन्य तीस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट इकतीस सागरोपम की है। [2] उवरिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं / [435-2 प्र.] भगवन् ! उपरितन-उपरितन | वेयक अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है? [435-2 उ.] गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त की है। [3] उरिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं तीसं सागरोवमाई अंतोमुहत्तूणाई, उक्कोसणं एक्कतीसं सागरोवमाई अंतोमुत्तूणाई। [435-3 प्र.] भगवन् ! उपरितन-उपरितन वेयक पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है? [435-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम तीस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम इकतीस सागरोपम की है। 436. [1] विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजिएसु णं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! जहणणं एक्कतीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाई / [436-1 प्र.] भगवन् ! विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित विमानों में देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [436-1 उ.] गौतम ! (इन सब देवों की स्थिति) जघन्य इकतीस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org