Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 350] प्रज्ञापनासूत्र [432-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम सत्ताईस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त कम अट्ठाईस सागरोपम की है। 433. [1] उवरिमहेटिममेवेज्जगदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठावीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं एगणतीसं सागरोवमाइं। [433-1 प्र.] भगवन् ! उपरितन-अधस्तन (ऊपर के त्रिक के निचले) अवेयक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है। [433-1 उ.] गौतम ! जघन्य अट्ठाईस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट उनतीस सागरोपम की है। [2] उवरिमहेट्ठिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / [433-2 प्र.] भगवन् परितन-अधस्तन ग्रंवेयक अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [433-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] उरिमहेटुिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा! जहणेणं अट्ठावीसं सागरोवमाइं, अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसणं एगूणतीसं सागरोवमाई अंतोमुत्तूणाई। [433-3 प्र.] भगवन् ! उपरितन-अधस्तन ग्रेवेयक पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [433-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त कम अट्ठाईस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त कम उनतीस सागरोपम की है। 434. [1] उवरिममज्झिमगेवेज्जगदेवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहणणं एगणतीसं सागरोबमाई, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमाई / [434-1 प्र.] भगवन् ! उपरितन-मध्यम (ऊपर के त्रिक में बीच वाले) ग्रैवेयक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? / [434-1 उ.] गौतम ! जघन्य उनतीस सागरोपम को तथा उत्कृष्ट तीस सागरोपम की है। [2] उवरिमझिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं / [434-2 प्र.] भगवन् ! उपरितन-मध्यम अवेयक अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [434-2 उ.] गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org