________________ 352]] [ प्रज्ञापनासूत्र [2] विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं / [436-2 प्र.] भगवन् ! विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित विमानों में (स्थित) अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [436-2 उ.) गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है / [3] विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं एक्कतीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोम हुत्तूणाई। [436-3 प्र. भगवन् ! विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित विमानों में स्थित पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही है ? [436-3 उ.] गौतम ! (इनकी स्थिति)जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम इकतीस सागरोपम की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपम की है। 437. [1] सवसिद्धगदेवाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! अजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिती पण्णता ? [437-1 प्र.] भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध विमानवासी देवों की कितने काल तक की स्थिति कही [437-1 उ.] गौतम ! अजघन्य-अनुत्कृष्ट (जघन्य और उत्कृष्ट के भेद से रहित) तेतीस सागरोपम की स्थिति कही गई है। [2] सव्वदसिद्धगदेवाणं अपज्जताणं पुच्छा / गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / [437-2 प्र.] भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध विमानवासी अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [437-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [3] सम्वदसिद्धगदेवाणं पज्जत्ताणं [भंते ! ] केवतियं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! प्रजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई ठिती पण्णत्ता / // पण्णवणाए भगवई चउत्थं ठिइपयं समत्तं / [437-3 प्र.] भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध-विमानवासी पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? ___ [437-3 उ.] गौतम ! इनकी स्थिति अजधन्य-अनुत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपम की कही गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org